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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सड़कोंके बारेमें है और दूसरा सुचिन्द्रम्के सम्बन्धमें। मेरे जानते इन दोनों स्थानोंपर न्याय सुधारकोंके पक्षमें है। मुझे मालूम हुआ है कि पहले स्थानमें तो सत्याग्रहियोंने अपना संघर्ष शुरू भी कर दिया है। मेरा खयाल है, यह कदम जल्दी में उठाया गया है। इसलिए मैंने उन्हें एक तार भेजकर फिलहाल रुके रहनेको और कल त्रिवेन्द्रम्‌में मुझसे मिलनेको कहा है। यदि मुझे मौका मिला, और उम्मीद है मिलेगा, तो मैं इन दोनों सवालोंपर अधिकारियोंसे बातचीत करना चाहता हूँ । यद्यपि मेरी इस त्रावणकोर यात्राका मुख्य उद्देश्य खादीका काम या खादीके लिए चन्दा उगाहना था, किन्तु भाग्यने मुझे यहाँ आते ही इस अस्पृश्यताके झंझटमें डाल दिया। मेरे पास जो थोड़ा-सा समय है, उसमें मैं पूरी नम्रताके साथ राज्य और जनताको एक सम्मानजनक निबटारा करनेमें सहायता देनेकी यथाशक्ति कोशिश करूँगा।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २०-१०-१९२७

७३. पत्र : मणिलाल और सुशीला गांधीको

त्रावणकोर
[९ अक्टूबर, १९२७ ]

[१]

चि० मणिलाल और चि० सुशीला,

तुम्हारे पत्र मिलते रहते हैं। तुमने शास्त्रीजीके जिस दोषका उल्लेख किया है. उसका विचार हम नहीं कर सकते। सरकारी नौकरीमें यह दोष लगभग अनिवार्य है। मुझे जब सरकारकी पद्धति बहुत गलत मालूम हुई तभी तो मैंने असहयोगको अपनाया। यह उचित ही है कि तुम जिस विशेष वातावरणमें बड़े हुए हो उसके कारण तुम्हें ऐसी स्तुति असह्य मालूम होती है। किन्तु अपनेसे बड़ोंका सम्मान करना चाहिए, इस नियमके अनुसार हमें जहांतक सम्भव हो उनकी टीका नहीं करना चाहिए । यह दोष तुमने मुझे वताया सो तो ठीक किया। किन्तु शास्त्रीजीके प्रति अपने व्यवहारमें अथवा उनके लिए तुम्हारे मनमें जो हार्दिक सम्मान है उसमें कोई फर्क मत पड़ने देना। उनके जैसे नीतिमान् और कुशल देशसेवक हमारे पास बहुत ही कम हैं।

देवदासका बवासीरका ऑपरेशन हुआ है। वह डा० राजन्के अस्पतालमें है। ऑपरेशन हुए आज छः दिन हुए हैं। उसकी प्रगति ठीक है। आश्रमके लगभग सभी व्यक्ति बाढ़-संकट-निवारणके काममें लग गये हैं। हम लोग आज त्रावणकोर आये हैं । बा कन्याकुमारी देखने गई है। मैं और महादेव तो देख चुके हैं। काकासाहब भी साथ हैं। वे भी गये हैं।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (जी० एन० ४७२९) की फोटो-नकलसे ।
  1. १. देवदासके बवासीरके ऑपरेशनके उल्लेखसे; देखिए “पत्र: मोराबइनको", ३-१०-१९२७।