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भाषण : नागरकोइलमें

और अन्यत्र भी ब्राह्मण पुरोहित-पंडे अपने अज्ञान या उससे भी बदतर दोषोंके कारण उसी धर्मकी जड़ें खोद रहे हैं, जिसके वे संरक्षक माने जाते हैं। उनके पाण्डित्यका उपयोग जब एक जघन्य अन्ध-विश्वास, एक भयंकर अन्यायका समर्थन करनेके लिए किया जाता है तो वह पाण्डित्य धूलके समान है। इसलिए मैं कामना करता हूँ कि समय रहते वे कालके संकेतोंको पहचानेंगे और उस घटनाचक्र के साथ कदम मिलाकर चलेंगे जो उन्हें और हमें, हमारे चाहते या न चाहते हुए भी, सत्यके मार्गपर लिये जा रहा है। संसारके सभी धर्म अपनी तमाम विभिन्नताओंके बावजूद इस बातको एक स्वरसे स्वीकार करते हैं कि संसारमें अन्ततः सत्य ही टिकता है।

अधीर सुधारकको भी मैं आगाह कर देता हूँ कि यदि वह सदा सही रास्तेपर, जो सीधा किन्तु सँकरा है, आरूढ़ नहीं रहेगा तो वह अपना भी नुकसान करेगा और उस सुधारके मार्गमें भी बाधक बनेगा जिसको सम्पन्न करानेके लिए उसका अधीर होना बिलकुल उचित है। मैं यह कहनेका साहस करता हूँ कि सुधारकके हाथोंमें मैंने सत्याग्रह का अमोघ और अमुल्य अस्त्र दे दिया है। लेकिन, सफल सत्याग्रहकी शर्तें जरा कड़ी हैं। यदि सुधारकको ईश्वरमें, अपने-आपमें और अपने उद्देश्यमें विश्वास होगा तो वह कभी भी हिंसाका सहारा नहीं लेगा अपने उन घोरतम विरोधियोंके खिलाफ भी नहीं जिन्हें यदि वह अन्यायी, अज्ञान और हिंसक कहे तो वह भी उचित होगा । मेरा कहना है कि सत्यका प्रतिष्ठापन कभी भी हिंसाके जरिये नहीं हुआ है और मुझे यह विश्वास है कि मेरे इस कथनको कोई भी गलत साबित नहीं कर सकता । इसलिए सत्याग्रही अपने विरोधीको या तथाकथित शत्रुको जोर-जबरस्तीसे नहीं, बल्कि प्यारसे, उसे धीरे-धीरे अपने पक्षकी सचाईका कायल करके जीतता है। उसके तरीके बराबर नम्र और भद्रतापूर्ण होते हैं। वह कभी भी किसी चीजको बढ़ा-चढ़ाकर नहीं देखता। और चूँकि अहिंसाका दूसरा नाम प्रेम है, इसलिए, उसके पास स्वयं कष्ट-सहनके अलावा और कोई अस्त्र नहीं होता । और सबसे बड़ी बात तो यह है कि अस्पृश्यता निवारण आन्दोलन ऐसे आन्दोलनोंकी कोटिमें आता है जो मेरे विचारसे तत्त्वत: धार्मिक और आत्म-शुद्धिके आन्दोलन होते हैं। इसलिए इस आन्दोलनमें घृणा, जल्दबाजी, विचारहीनता और अतिरंजनाके लिए कोई गुंजाइश नहीं है। चूंकि सत्याग्रह सीधी कार्रवाईका एक सबसे शक्तिशाली तरीका है, इसलिए सत्याग्रह करनेसे पहले सत्याग्रही दूसरे सभी तरीकोंको आजमाकर देख लेता है। लेकिन जब वह एक बार अपनी अन्तरात्माके आकुल निर्देशको सुन लेता है और सत्याग्रह प्रारम्भ कर देता है तो उसे समझ लेना चाहिए कि उसने पीछे लौटनेका अपना सारा रास्ता बन्द कर दिया है और अब लौटनेकी कोई बात ही नहीं रह गई है। लेकिन, मैं आशा करता हूँ कि इस प्रदेशमें लोगोंको एक ऐसी बुराईको दूर करानेके लिए इतने सारे कष्ट नहीं सहने पड़ेंगे जो दिनके उजालेके समान स्पष्ट है ।

आपको यह जानकर खुशी होगी कि मेरे यहाँ आते ही पुलिस कमिश्नरने आकर मुझसे मिलनेका सौजन्य दिखाया। हमने इस बड़े मसलेपर बातचीत की। जहाँतक मैं जानता हूँ, अभी दो सवाल विचाराधीन हैं। एक तो तिरुवरप्पुके आसपासकी