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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जो उस वीभत्स सिद्धान्तका समर्थन करें और जो एक भी मनुष्यको अमुक परिवारमें उसके जन्म लेनेके कारण, न छूने लायक या न देखने लायक अथवा पास न फटकने देनेके लायक समझें । हिन्दूधर्मके एक सामान्य और विनम्र अध्येताके नाते और भावना तथा शब्द दोनों ही दृष्टियोंसे उसका पालन करनेकी अभिलाषा रखनेका दावा करनेवाले व्यक्तिकी हैसियतसे मैं कहता हूँ कि इस भयंकर सिद्धान्तके समर्थनमें मुझे कहीं भी कोई प्रमाण या औचित्य नहीं मिला है। हम इस भूलमें न पड़ें कि संस्कृत में लिखी और शास्त्रों में छपी एक-एक बात हमारे लिए बन्धनकारी है। जो नैतिकताके मूलभूत सिद्धान्तोंके विरुद्ध हो, जो सही दिशामें काम करनेवाली बुद्धिके विरुद्ध हो, वह चाहे कितना ही पुराना क्यों न हो, मगर शास्त्र नहीं हो सकता। मैंने अभी जो कुछ कहा है, उसका यथेष्ट समर्थन वेदोंसे, 'महाभारत' से और 'भगवद्गीता' से होता है। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि त्रावणकोरकी जागरूक महारानी साहिबा अपने राजत्वकालमें इस अभिशापको इस प्रदेशसे दूर कर सकेंगी; और कोई स्त्री यदि अपने-आपसे और अपनी प्रजासे यह कह सके कि मेरे राजत्वकालमें युगोंसे गुलामीमें पिसनेवाले इन लोगोंको मुक्ति मिल सकी है, तो इससे बड़ी बात उसके लिए और क्या होगी ?

मगर मैं उनकी और उनके मन्त्रियोंकी कठिनाइयोंको भी जानता हूँ । चाहे कोई सरकार कितनी भी निरंकुश क्यों न हो, ऐसे सुधार करनेमें डरती ही है, वह फूंक-फूंककर ही पाँव रखती है। ऐसे सुधारोंके सम्बन्ध में कोई भी चतुर सरकार आन्दोलनका स्वागत करेगी। मूर्ख सरकार लोकमतसे अधीर होकर ऐसी हलचलको जोर-जबरदस्तीसे रोकनेकी कोशिश करेगी। मगर वाइकोम सत्याग्रहके अपने जाती अनुभवोंसे मैं जानता हूँ कि आपकी सरकार न सिर्फ ऐसे आन्दोलनोंको चलने देगी, बल्कि वह उनका स्वागत भी करेगी, ताकि इस सुधारको सम्पन्न करनेकी दृष्टिसे उसके हाथ मजबूत हो सकें। इसलिए पहल करनेका काम तो त्रावणकोरकी जनताके हाथमें ही है लेकिन तथाकथित अस्पृश्योंके, जिन्हें "अवर्ण" हिन्दूका गलत नाम दिया गया है, हाथोंमें नहीं। मेरे लिए तो "अवर्ण" हिन्दू शब्द ही असंगत है और हिन्दू धर्मपर कलंक है। कई मामलोंमें पहल उनके हाथमें नहीं, बल्कि उन तथा- कथित सवर्ण हिन्दुओंके हाथोंमें है, जिन्हें अस्पृश्यताके पापसे अपनेको मुक्त करना है। मैं साफ कह दूं कि यदि आप हाथपर-हाथ धरे बैठे रहते हैं और सिर्फ मनसे ऐसा मानते रहते हैं कि अस्पृश्यता पाप है तो यह काफी नहीं है। जो कोई गुनाह होते देखता रहता है, वह भी उसमें हिस्सेदार है और कानून उसे भी गुनाहमें सक्रिय रूपसे शामिल मानता है। इसलिए आपको सभी वैध और उचित उपायोसे आन्दोलन शुरू करना और जारी रखना है। यह सुधार तो कबका सम्पन्न हो चुकना चाहिए था, किन्तु ब्राह्मणोंका पुरोहितवर्ग आज भी इसकी राह रोक रहा है। यदि मेरी आवाज उनतक पहुँच सकती हो तो वे इसे सुनें। यह दुखद बात है, मगर ऐतिहासिक सत्य है कि जिन पुरोहितोंको धर्मका सच्चा संरक्षक होना चाहिए था वे ही अपने धर्मके विनाशके साधन सिद्ध हुए हैं। मैं साफ देख रहा हूँ कि त्रावणकोरमें