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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नाडरों-जैसे स्वच्छ और कुशल व्यापारी समुदायको मन्दिरोंमें प्रवेशकी अनुमति न हो। मैं चाहता हूँ कि आप किसी प्रकार इस बुराईसे यथाशीघ्र मुक्ति पा लें। अब मैं ये चीजें नीलाममें बेचूंगा और स्वयंसेवक लोग आपके बीच जाकर चन्दा इकट्ठा करेंगे। मैं आशा करता हूँ कि जो लोग कपड़ेके इन टुकड़ोंको खरीदेंगे वे उन्हें पहननेमें गर्वका अनुभव करेंगे ।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, १०-१०-१९२७

७०. पत्र : प्रागजी देसाईको

८ अक्टूबर, १९२७

भाईश्री प्रागजी,

तुम्हारा पत्र मिला। उसके पहले ही मैं शास्त्रीजी और एन्ड्रयूजको लिख चुका था । तुम्हारा पत्र मैंने दीनबन्धुको[१] अपनी सिफारिशके साथ भेज दिया है। मैं तो ऐसा नहीं मानता कि उन्होंने भूल की होगी। जो भी हुआ हो इतना तो निश्चित है कि वे जानबूझकर झूठ नहीं बोल सकते। और फिर, वे जो भी सेवा करें, उसके लिए तो हमें उनका कृतज्ञ होना ही चाहिए। जल्दीमें कुछ मत करना । तुम नेटालमें रह चुके हो इसलिए सावधिक अनुमति पत्र लेनेकी कोई जरूरत नहीं। किन्तु यदि शास्त्री आग्रह करें और एक वर्षसे ज्यादाकी अवधिवाले कुछ अनुमति पत्र दिलानेका बीड़ा उठायें और तुम ट्रांसवालमें रहना चाहते हो तो सावधिक अनुमति पत्र ले लेना । अगर मणिलालको देवदासने ही भेजा है तब तो यह बहुत अच्छी बात हुई है।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (जी० एन० ५०३०) की फोटो-नकलसे ।
 
  1. १. सी० एफ० एन्डयूज ।