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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

स्याएँ हैं, उनमें से हरएक को विश्वासपूर्वक हल करनेका बीड़ा मैं उठा सकता हूँ । ब्राह्मणका मूल अर्थ है ऐसा व्यक्ति जिसे ब्रह्मका ज्ञान हो, और ऐसे व्यक्तिका गुण यह है कि वह विद्वत्ता, आत्म-त्याग और सेवाकी प्रतिमूर्ति हो। मैं स्वीकार करता हूँ कि ऐसे ब्राह्मण भारतमें सभी जगह नहीं मिलते। लेकिन मैं व्यक्तिगत अनुभवसे इस बातकी साक्षी भरता हूँ कि ऐसे ब्राह्मण अब भी हैं; और भारतमें मेरा एक कार्य यह है कि मैं ऐसे हर ब्राह्मणको पकड़ें । यह मेरा विश्वास है कि चरखा संघमें कुछ ब्राह्मण हैं, जिनमें लगभग सभी ब्राह्मणोचित गुण मौजूद है। व्यक्तिगत रूपसे मैं नहीं मानता कि ऐसे लोगोंके ज्ञान और आत्म-त्यागके बिना इस बड़े आन्दोलनको इतने व्यापक पैमानेपर चलाया जा सकता। यदि मेरे पास समय और शक्ति होती तो मैं ब्राह्मण-अब्राह्मणके इस जटिल प्रश्नपर और अधिक विस्तारसे चर्चा करता । मैं यह सोचनेका साहस करता हूँ कि मुझे अब इस बातका खासा अन्दाज हो गया है कि यह समस्या है क्या । मैं आशा रखता हूँ कि समय मिलते ही मैं अपने विचारोंको लिखित रूपमें प्रस्तुत करूंगा। लेकिन ब्राह्मण-अब्राह्मण विवादपर बहस करते हुए हमें भारतके जनसाधारणको नहीं भूल जाना चाहिए ।

अगर मैं संक्षेपमें कहूँ तो ब्राह्मण-अब्राह्मणका सवाल भी कुल मिलाकर अस्पृ- इयताका ही सवाल है । जो आदमी अस्पृश्यताके नागको मार देगा, समझ लीजिए कि उसने ब्राह्मण-अब्राह्मण समस्याकी जड़पर कुठाराघात कर दिया है। कारण, यह मेरा निश्चित विश्वास है कि यह अस्पृश्यताका अभिशाप ही है जिसने हिन्दू धर्ममें प्रवेश करके उसे विषाक्त कर दिया है । सो इस तरह कि यह अस्पृश्यता, जिसका उग्रतम और संतापकारी रूप यह है कि हम कुछ लोगोंको स्पर्श न करने लायक और कुछको न देखने लायक मानते हैं, हिन्दू धर्मके मर्ममें बिंध गई है। एक वर्गके ऊपर दूसरे वर्ग द्वारा अपनी श्रेष्ठताका अहंकारपूर्ण दावा ही अस्पृश्यताका आधार है; और एक बार हम इस श्रेष्ठता रूपी सहस्रमुखी नागसे सफलता पूर्वक निपट लें तो मेरे विचारसे हमें और किसी चीजके बारेमें लड़नेकी जरूरत नहीं रहेगी। इसलिए हर प्रकारकी अस्पृ- श्यताके विरुद्ध इस जिहादमें मैं आप सबको मेरा साथ देनेको निमंत्रित करता हूँ । मुझे आपके अभिनन्दनपत्रोंसे और आज तीसरे पहर हुई बातचीत में यह जानकर खुशी हुई कि आपके नगरपालिका-संचालित स्कूल अस्पृश्योंके लिए खुले हुए हैं। लेकिन मैं आपसे कहूँगा कि इतनेसे ही सन्तोष मत मानिए। जब हमारे बीचसे अस्पृश्यता सचमुच खत्म हो जायेगी तो आपको अस्पृश्योंकी बस्ती नहीं मिलेगी। तब किसी मन्दिरके भीतर पूजा-कक्षतकमें जानेका अधिकार किसी अस्पृश्यको भी उतना ही होगा जितना किसी बड़ेसे-बड़े ब्राह्मणको है। वे सार्वजनिक कुओं और सार्वजनिक स्थानोंके उपयोगके उतने ही अधिकारी होंगे जितने कि अन्य लोग हैं। तब हमारे यहाँ ब्राह्मण तालाब, अब्राह्मण तालाब और अस्पृश्य तालाव नहीं होंगे। 'भगवद्गीता' की भाषामें, ब्राह्मण और भंगी ईश्वरके समक्ष एक-जैसे होंगे। और आप अपने मनमें ऐसा कोई भ्रम पैदा न होने दें. -- जैसा कि पण्डित लोग अकसर पैदा कर देते हैं - कि 'गीता' का यह वचन असाधारण यशस्वी या आध्यात्मिक गुणोंवाले व्यक्तियोंपर ही लागू