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भाषण : तिन्नेवेल्लीकी सार्वजनिक सभामें

क्षेत्रीय भाषाओंको शिक्षाका माध्यम बनानेके आन्दोलनके मैं पूरी तरह पक्षमें हूँ। हमें तमिल सीखनी चाहिए, उसे अंग्रेजीके सामने प्राथमिकता देनी चाहिए और अन्य सभी भाषाओंसे ऊपर रखना चाहिए।

जैसा कि आप जानते हैं, मैंने एक स्थानकी स्वागत समितिको हल्की फटकार भी बताई है कि उन्होंने अपनी प्रान्तीय भाषा तमिलके बजाय अपना अभिनन्दनपत्र अंग्रेजीमें क्यों पढ़ा। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि आप इस सिलसिलेमें मुझपर आरोप नहीं लगायेंगे, क्योंकि आप जानते हैं कि मैं स्कूलों और सभी शिक्षा-केन्द्रोंमें अंग्रेजीके स्थानपर तमिलको लागू करनेके पक्षमें हूँ ।

एक अभिनन्दनपत्र तूतीकोरिनके मछुओंकी तरफसे भी है। उन्होंने मुझसे अपनी एक कठिनाईसे निकलनेका रास्ता बतानेको कहा है। मुझे दुःख है कि उन्होंने अपने अभिनन्दनपत्रमें जिस विधेयकका जिक्र किया है, उसे मैंने पढ़ा नहीं है। इस मामलेमें तो स्थानीय राष्ट्र-भक्तोंको ही उन्हें मार्गदर्शन देना है। अभिनन्दनपत्रमें कही गई सारी बातोंका जवाब देनेके बाद अब मैं अपने उस प्रिय विषयपर आता हूँ, जो मुझे यहाँ लाया है।...[१]

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, ८-१०-१९२७

६९. भाषण : तिन्नेवेल्लोको सार्वजनिक सभामें

७ अक्टूबर, १९२७

अध्यक्ष महोदय और मित्रो,

इन बहुत सारे अभिनन्दनपत्रों और आपकी थैलियों तथा उपहारोंके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। आपने अपने सभी अभिनन्दनपत्र नहीं पढ़े, इसके लिए मैं आपको और अधिक धन्यवाद देता हूँ। आज मैं दिन-भर बहुत व्यस्त रहा, और उससे भी ज्यादा थकान मुझे जबर्दस्त शोर-शराबेके बीच तिन्नेवेल्लीकी सड़कोंसे गाड़ीमें यात्रा करनेमें हुई है । और फिर अब मुझे बहुत देर भी हो चुकी है। इसलिए अब आप शायद समझ सकते हैं कि आपने अभिनन्दनपत्रोंको पढ़नेका अपना अधिकार जो छोड़ दिया, उसकी मैं कितनी कद्र करता हूँ। आपने मुझे इतने सारे छोटे-बड़े उपहार दिये हैं कि जब मैं अपनी रीतिके अनुसार सभाके अन्तमें इन उपहारोंको नीलाममें बेचने लगूँगा तो उसमें भी कुछ समय लगेगा। यह बतानेकी शायद ही जरूरत हो कि मैंने आपके सारे अभिनन्दनपत्रोंको पढ़ लिया है, जिनके अनुवाद मुझे दे दिये गये थे। भारतीय ईसाई संघके अभिनन्दनपत्रमें ईसाई समुदायकी ओरसे दिये गये इस आश्वासनकी मैं कद्र करता हूँ कि भले ही उन्होंने पहले अपनेको राष्ट्रीय आन्दोलनोंसे दूर रखा हो, लेकिन अब वे उसमें भाग ले रहे हैं। वस्तुत: मैं बड़ी दिलचस्पी और

  1. १. इसके बाद गांधीजी खादी और अस्पृश्मताके बारे में बोले ।