पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/१२१

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

६८. भाषण : तूतीकोरिनकी सार्वजनिक सभाम

६ अक्टूबर, १९२७

अध्यक्ष महोदय और मित्रो,

इन सब अभिनन्दनपत्रों और थैलियोंके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ । मैं शरतम्बल और सरस्वती देवीको भी उनकी चूड़ियोंके लिए धन्यवाद देता हूँ । इन बहनोंने मेरे उस अनुरोधको अनकहे ही पूरा कर दिया है जो मैं बहनोंसे जहाँ कहीं मिलता हूँ, अवश्य करता हूँ। मैं इस नई और सुन्दर अँगूठीके दाताको तथा चाँदीके प्याले देनेवालोंको भी धन्यवाद देता हूँ। ये सब चीजें तथा मढ़े मढ़े हुए अभिनन्दनपत्र कुछ देरमें आपके सामने बिक्रीके लिए रखे जायेंगे। क्योंकि इस समयतक आप सब जान गये हैं कि मैं इन सब चीजोंका इस्तेमाल नहीं करता, क्योंकि अपने-आपको दरिद्रनारायणका प्रतिनिधि कहनेवालेके लिए इन चीजोंका व्यक्तिगत उपयोग करना ठीक नहीं होगा। मैं इनका कोई निजी इस्तेमाल नहीं करता लेकिन आपसे प्राप्त इन चीजोंका स्वागत करता हूँ। मुझे ऐसा करनेका अधिकार है।

आपके बीच एक हिन्दी शिक्षक हैं, इस बातके लिए मैं आपको बधाई देता हूँ और यह जानकर मुझे खुशी हुई है कि न केवल लड़के और लड़कियाँ, बल्कि प्रौढ़ स्त्री-पुरुष भी हिन्दी सीख रहे हैं। लेकिन मुझे बताया गया है कि हिन्दी-शिक्षाका पूरा खर्च आप नहीं उठाते। यदि ऐसा है तो मैं समझता हूँ कि यह आपकी राष्ट्र- भावनापर धब्बा है। जैसा कि आप जानते हैं, पिछले कई वर्षोंसे उत्तर [ भारत ] के लोग इस हिन्दी प्रचार कार्यका खर्च उठाते रहे हैं। लेकिन अब समय आ गया है कि यह कार्य आत्म-निर्भर हो जाये । निश्चय ही एक हिन्दी शिक्षक या दो शिक्षकों- का खर्च उठानेमें आपका बहुत पैसा नहीं लगेगा। इसलिए मैं चाहता हूँ कि आप हिन्दी शिक्षकका सारा वेतन स्वयं देनेके लिए हर प्रयत्न करेंगे ।

आपके यहाँ एक राष्ट्रीय पाठशाला है, इसके लिए भी मैं आपको बधाई देता हूँ और इसके लिए भी कि आपने उसका नाम लोकमान्य बाल गंगाधर तिलकके नामपर रखा है। मुझे आपके अभिनन्दनपत्रसे यह जानकर दुख हुआ कि आप इस स्कूलका खर्च उठानेमें असमर्थ हैं। यह एक बड़ी बात है कि आपके स्कूलमें अस्पृश्यताको कोई स्थान नहीं है और आप उस स्कूलमें हिन्दी भी पढ़ा रहे हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि राष्ट्र-प्रेमी नागरिक इस स्कूलकी हालतकी जाँच करेंगे और उसे आत्म-निर्भर बनायेंगे । अपने अभिनन्दनपत्रमें आपने मुझसे कहा है कि मैं यहाँ इस नगरमें जो चन्दा इकट्ठा करूँ, उसका एक हिस्सा स्कूलके निमित्त दे दूं। मुझे आपको यह दुखके साथ बताना पड़ रहा है कि मैं ऐसा नहीं कर सकता । मैं कितना ही चाहूँ, किन्तु यह उचित और ईमानदारीका काम नहीं होगा कि एक निश्चित उद्देश्य के लिए निर्धारित धनका एक छोटा-सा अंश भी मैं अन्य काममें लगाऊँ। यदि किसी नागरिकने मुझे इस स्पष्ट