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आठ

जैसा 'मृत्युका-सा सन्नाटा' देखा वैसा चम्पारनके बाद इससे पहले कभी नहीं देखा था (पृष्ठ ४२३) । उन्होंने स्थानीय कार्यकर्ताओंका उद्बोधन करते हुए कहा कि वे जनताको "इस भीरुताको, जो करीब-करीब कायरता ही है" छोड़ देनेका पाठ पढ़ायें (पृष्ठ ४२४) ।

मद्रासके कांग्रेस अधिवेशनमें दो प्रधान प्रश्नोंको लेकर गांधीजी और अन्य नेताओंके बीच एक साफ मतभेद सामने आया, जिनमें एक तो हिन्दू-मुस्लिम समस्या- का प्रश्न था और दूसरा था देशके राजनीतिक ध्येयकी व्याख्या । इनमें पहले प्रश्न- के सम्बन्धमें तो वे बहुत पहले ही यह बात कबूल कर चुके थे कि आजकल जैसा वातावरण है, उससे मेरे मनका मेल नहीं बैठता " (पृष्ठ १७) और इसीलिए गांधीजी- को हिन्दू-मुस्लिम एकता सम्बन्धी प्रस्तावके बारेमें, जिस रूपमें वह अधिवेशनमें पास किया गया, कोई विशेष उत्साह नहीं था, (देखिए परिशिष्ट ९) यद्यपि उसका मसविदा बनानेमें उनका भी हाथ था । यंग इंडिया' में इसकी चर्चा करते हुए उन्होंने लिखा कि “इस प्रस्तावका मूल रूप तो बहुत ही बुरा था और अन्तमें विषय निर्धारिणी समितिसे स्वीकृत होकर वह जिस रूपमें निकला उसके बारेमें सिर्फ इतना ही कहा जा सकता है कि वह निर्दोष है और हमारे राष्ट्रीय विकासकी वर्तमान स्थितिमें उसका सबसे अच्छा वही रूप स्वीकृत हो सकता था । पर कमसे कम मैं तो उसपर खुशियाँ नहीं मना सकता ! मैं तो उसे सिर्फ एक कामचलाऊ प्रस्ताव ही मान सकता हूँ" (पृष्ठ ४५२) ।

अन्य नेताओंके साथ -- खास तौरसे पं० जवाहरलाल नेहरूके साथ –– गांधीजीके जो मतभेद थे वे तो देशके राजनीतिक ध्येयकी व्याख्याको लेकर थे । स्वाधीनताके प्रस्तावकी चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि वह तो "उतावलीमें सोचा और बिना विचारे स्वीकार किया गया " प्रस्ताव है (पृष्ठ ४५३) । उनकी इस आलोचनासे पं० जवाहरलाल उत्तेजित हो उठे और उन्होंने बहुत रोषपूर्वक अपने एक पत्रमें उसका प्रतिवाद किया ( देखिए परिशिष्ट १०) । गांधीजीने इसके उत्तरमें लिखा: “मुझे तुम्हारे-मेरे बीचका दृष्टिभेद कुछ-कुछ दिखाई देने लगा था, फिर भी मुझे तनिक भी कल्पना नहीं थी कि ये मतभेद इतने गम्भीर हो जायेंगे । ... मुझे बिलकुल साफ दिखाई देता है कि तुम्हें मेरे और मेरे विचारोंके विरुद्ध खुली लड़ाई करनी चाहिए । मैं तुमसे अपना यह दुख नहीं छिपा सकता कि मैं तुम्हारे जैसा बहादुर, वफादार, योग्य और ईमानदार साथी खो रहा हूँ; परन्तु ध्येयकी सिद्धिके लिए राजनीतिक सहचरताको भी कुर्बान करना पड़ता है" (पृष्ठ ४८८) । पर इसी बीच साइमन कमीशनके आगमनको लेकर देश-भरमें एक गहरा रोष छा गया और उसके प्रति विरोध-प्रदर्शनोंकी आयोजनाएँ करने की आवश्यकताओंके आगे उनके ये सैद्धान्तिक मतभेद फीके पड़ गये ।