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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

शादी न करनेकी सलाह देता हूँ। इस प्रथाकी पवित्रताकी रक्षा तभी हो सकेगी जब बाल-विधवाओंका अभिशाप उससे दूर कर दिया जाये ।

ब्रह्मचर्यके पालनसे विधवाओंको मोक्ष मिलता है, इसका तो अनुभवमें कोई प्रमाण नहीं मिलता है। मोक्ष प्राप्त करनेके लिए ब्रह्मचर्यके अतिरिक्त और भी बहुत-सी बातोंकी आवश्यकता होती है। और जो ब्रह्मचर्य जबरदस्ती लादा गया है, उसका कुछ भी मूल्य नहीं है। उससे तो अकसर गुप्त पाप होते हैं, जिससे उस समाजकी नैतिक शक्तिका ह्रास होता है, जिसमें ऐसे पाप होते हैं। पत्रलेखक महा- शयको यह जान लेना चाहिए कि मैं यह अपनी जानकारीके आधारपर लिख रहा हूँ

यदि मेरी इस सलाहके परिणामस्वरूप बाल-विधवाओंसे न्याय हो सके और फलतः कुमारियोंको पुरुषकी विषय-लालसाके लिए बेच देनेके बदले उन्हें विवाहसे पूर्व वय और बुद्धिकी दृष्टिसे पूरा विकास प्राप्त करनेकी सुविधा दी जा सके तो मुझे बड़ी खुशी होगी।

विवाहके बारेमें मेरी ऐसी कोई मान्यता नहीं है जो आत्माके देहान्तरण, पुन- र्जन्म और मुक्तिसे असंगत हो। पाठकोंको यह मालूम होना चाहिए कि उन करोड़ों हिन्दुओंके बीच, जिन्हें हम दम्भपूर्वक निम्न श्रेणीके कहते हैं, विधवाओंके पुनर्विवाह पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है। और मैं यह नहीं समझ पाता हूँ कि जब वृद्ध विधुरोके पुनविवाहसे उस मान्यतामें कोई बाधा नहीं पहुँचती, तो जिन लड़कियोंको गलत तौर पर विधवा कहा जाता है, उनके वास्तविक विवाहसे उस भव्य सिद्धान्तमें कैसे बाधा पहुँचती है। पत्रलेखककी जानकारीके लिए मैं यह बता दूं कि आत्माका देहान्तरण और पुनर्जन्म मेरे लिए कोरे सिद्धान्त ही नहीं, बल्कि ऐसी वास्तविकताएँ है, जैसी कि प्रतिदिन सूर्यका उदय होना है। मुक्ति एक ऐसा सत्य है जिसे प्राप्त करनेके लिए मैं भरसक प्रयत्न कर रहा हूँ। इसी मुक्ति-चिन्तनने मुझे वाल-विधवाओंके प्रति किये जानेवाले अन्यायका स्पष्ट भान कराया है। अपनी पुरुषत्वहीनताके कारण हमें सीता तथा उन अन्य अमर देवियोंके साथ, जिनके नामोंका उल्लेख पत्रलेखकने किया है, आजकी इन पीड़ित-प्रताड़ित बाल-विधवाओंका नाम नहीं लेना चाहिए।

अन्तमें, यद्यपि हिन्दू धर्ममें सच्चे वैधव्यका गौरव गाया गया है और यह ठीक ही किया गया है, फिर भी जहाँतक मैं जानता हूँ, इस विश्वासके लिए कोई प्रमाण नहीं है कि वैदिक कालमें विधवाओंके पुनर्लग्नपर सम्पूर्ण प्रतिबन्ध था। परन्तु सच्चे वैधव्यके विरुद्ध मेरी यह लड़ाई नहीं है। मेरी लड़ाई तो उसकी उस भद्दी नकलके खिलाफ है जो अत्याचारका एक साधन बनी हुई है। बेहतर रास्ता तो यह है कि जैसी लड़कियाँ मेरे खयालमें हैं, वैसी लड़कियोंको विधवा माना ही नहीं जाये और जिस हिन्दूमें असहायोंके पक्षसे खड़े होनेका कुछ भी साहस होगा वह इन्हें इस असह्य स्थितिसे छुटकारा दिलाना अपना कर्त्तव्य मानेगा। इसलिए मैं विनम्रतापूर्वक किन्तु जोर देकर प्रत्येक हिन्दू युवकको फिरसे यही सलाह देता हूँ कि वह सिवाय इन कुमारियोंके, जिन्हें गलतीसे विधवा कहा जाता है, और किसीसे शादी न करे ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, ६-१०-१९२७