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रोषभरा विरोध

आपसमें कोई न्यायोचित और ईमानदाराना समझौता करनेका आग्रह करूंगा। मैं अपने विचार 'यंग इंडिया' में प्रकाशित करूँगा। दूसरे उन्हें स्वीकार करें या अस्वीकार करें, मुझे इसकी परवाह नहीं है।...[१]

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू ८-१०-१९२७

६५. रोषभरा विरोध

एक बंगाली स्कूलके प्रधानाध्यापक लिखते हैं :[२]

आपने मद्रासके विद्यार्थियोंको विधवा लड़कियोंसे ही शादी करने की सलाह जो भाषण[३] किया है, उससे हम भयभीत हो रहे है...

विधवाओंके जिस आजीवन ब्रह्मचर्यके पालनके कारण भारतकी स्त्रियोंको संसारमें सबसे बड़ा, बल्कि ऊँचा स्थान प्राप्त हुआ है, उसके पालन करनेकी वृत्तिको ऐसी सलाहें नष्ट कर देंगी और आज उन्हें ब्रह्मचर्य के द्वाराएक हो जन्ममें मोक्ष प्राप्त करनेका जो अवसर सुलभ है, उसे समाप्त कर देंगी । इस प्रकार विधवाओंके प्रति ऐसी सहानुभूति दिखाना उनकी कुसेवा होगी और कुमारियोंके प्रति, जिनके विवाहका प्रश्न आज बड़ा पेचीदा और मुश्किल हो गया है, यह एक बड़ा अन्याय होगा। विवाह-सम्बन्धी आपके इन विचारोंसे हिन्दुओंके आत्माके देहान्तरण, पुनर्जन्म और मुक्तिके सिद्धान्तकी इमारत ढह जायेगी और हिन्दू समाज भी पतित होकर उसी स्तरपर आ जायेगा जिस स्तरपर वे दूसरे समाज हैं, जिन्हें हम पसन्द नहीं करते।.. हिन्दू समाजको अहल्याबाई, रानी भवानी, बेहुला, सीता, सावित्री, दमयन्तीके उदाहरणोंसे मार्ग- दर्शन लेना चाहिए और हमें उसको उन्हींके आदर्शोंपर चलाना चाहिए।.

इस रोषभरे विरोधसे न मेरे विचार बदले हैं और न मुझे कोई पश्चात्ताप ही हुआ है। कोई भी विधवा, जिसमें इच्छा शक्ति है और जो ब्रह्मचर्यको समझती है तथा उसका पालन करनेको कटिबद्ध है, मेरी इस सलाहसे अपना इरादा नहीं छोड़ देगी। परन्तु यदि मेरी सलाहपर अमल किया जायेगा तो उससे उन छोटी उम्र की लड़कियोंको जरूर राहत मिलेगी जो शादीके समय शादी किसे कहते हैं, यह भी नहीं समझती थीं। उनके सम्बन्धमें “ विधवा " शब्दका प्रयोग इस पवित्र शब्दका दुरुपयोग है। मुझे पत्र लिखनेवाले इन महाशयके मनमें जो खयाल है, उसी खयालसे तो मैं देशके युवकोंको या तो इन तथाकथित विधवाओंसे शादी करनेकी या बिलकुल ही

  1. १. इसके बाद गांधीजी खादी तथा अस्पृश्यतापर बोले ।
  2. २. इसके कुछ अंशका ही अनुवाद दिया जा रहा है।
  3. ३. देखिए खण्ड ३४, पृष्ठ ५२०-२६ ।