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पत्र: मीराबहनको

मैंने इस प्रस्तावके प्रति अपनी सहमति दे दी। इस प्रस्तावपर इसलिए भी मैंने अपनी सहमति दी क्योंकि फिलहाल मैं असमर्थ हूँ और इसका भी कुछ ठीक नहीं कि मैं आश्रम कबतक पहुँचूँगा; ऐसी स्थितिमें ४ बजे उठने के अपने आग्रहपर डटे रहनेको दुराग्रह ही माना जाता ।

मैं खुद भला-चेंगा होऊँ और आश्रममें उपस्थित रहूँ तो सम्भवतः कुछ दूसरा ही निर्णय कर सकता हूँ किन्तु अपने स्वास्थ्यको जोखिममें डालकर ४ बजे उठनेके निर्णयपर अटल नहीं रहा जा सकता। प्रार्थना ४ बजे ही होनी चाहिए यह तो कोई अटल सिद्धान्त नहीं है। यह साध्य नहीं बल्कि साधन-मात्र है।

मैं तुम्हारा भाव भली-भाँति समझ गया हूँ और मेरी सहमतिका कारण तुम भी समझ लेना । इससे न तो मैं निराश हुआ हूँ और न उकताया ही हूँ। केवल सार्वजनिक हितकी बातको ध्यान में रखते हुए ही मैंने ४ बजेका बन्धन हटा लिया है। इस बारेमें मैं मगनलालको विस्तारपूर्वक समझा चुका हूँ। इसके बावजूद यदि कोई शंका हो तो लिखना।

बालकृष्णका पत्र मिला है। उसका पत्र पाकर मुझे प्रसन्नता हुई है। समय मिलनेपर उसे लिखूंगा। छोटेलालसे कहना कि शायद आज मैं उसे न लिख सकूँ।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (एस० एन० ९४१७ ) की फोटो-नकलसे ।

६३. पत्र : मीराबहनको

बुधवार [५ अक्टूबर, १९२७ ]

[१]

चि० मीरा,

मेरा खयाल है, चूँकि मैं बहुत तेजीसे मद्राससे दूर चला जा रहा हूँ, इसी- लिए तुम्हारा कोई पत्र मुझे नहीं मिल पाया। कल मैं ढेर-सारे पत्र पानेकी आशा करता हूँ। यह पत्र तुम्हें सिर्फ यह बतानेके लिए लिखा है कि तुम्हारी याद बराबर बनी रहती है।

बापू

अंग्रेजी (सी० डब्ल्यू० ५२९८) से।
सौजन्य : मीराबहन
  1. १. मीराबहनने अपने संग्रह में इस पत्रको १९२७ के अन्तमें रखा है। अक्टूबर, १९२७ के पहले सप्ताह में गांधीजी उन्हें हर रोज पत्र लिखते रहे। बुधवार ५ तारीखको कोई पत्र नहीं मिला। प्रस्तुत पत्रका विषय ४ और ६ अक्टूबर, १९२७ के पत्रोंसे सम्बद्ध जान पड़ता है।