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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भारसे मुक्त कर दें। मुझे कोई सन्देह नहीं है कि इस सभामें ऐसे बहुतसे लोग जिन्होंने थैलियोंके लिए कोई चन्दा नहीं दिया है। और इसमें भी मुझे सन्देह नहीं है कि आपमें से कुछने पर्याप्त चन्दा नहीं दिया है। यदि मेरी बात सुननेके बाद आपके मनमें खादीके महत्त्वके सम्बन्धमें; वह देशकी जो बहुमूल्य सेवा करती है उसके सम्बन्धमें, कोई सन्देह न रह गया हो, और यदि आप सन्तुष्ट हों कि आपको कमसे कम नहीं बल्कि ज्यादासे-ज्यादा चन्दा देना चाहिए, तो आप लोग कृपया अपनी थैलियोंको खोल देंगे।

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, ६-१०-१९२७

६१. पत्र : सुरेन्द्रको

[४ अक्टूबर, १९२७ के लगभग ]

[१]

चि० सुरेन्द्र,

तुम्हारा पत्र मिला। शारदा बनके बारेमें तो मेरी स्मृतिकी भूल हो गयी । मगनलाल लिखते हैं कि उसकी तबीयत तो कबकी ठीक हो गयी है। मैं उसे कल पत्र लिखनेवाला हूँ

प्रातः उठनेके बारेमें सब लोग मिलकर जो परिवर्तन करना ठीक जान पड़े, जरूर करें। मेरा इस सम्बन्धमें कोई आग्रह नहीं है। सबकी तबीयत ठीक रहे, यह निःसन्देह पहली आवश्यकता है। जिन्हें ४ बजे उठना सहज हो वे भले चार बजे उठें और बाकी सब घंटी बजनेपर ही उठें।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (एस० एन० ९४१३) की फोटो-नकलसे।

६२. पत्र: सुरेन्द्रको

[४ अक्टूबर, १९२७ के पश्चात् ]

[२]

चि० सुरेन्द्र,

तुम्हारा पत्र मिला। मैंने तुम्हें संक्षेपमें लिखा क्योंकि मुझमें अभी पहले जितनी शक्ति नहीं आयी है और जहाँ थोड़ा-सा ही लिखनेसे काम चल जाता है वहाँ मैं वैसा ही करता हूँ। अपनी सहमति प्रकट करते हुए मेरे मनमें न तो निराशा थी, न क्रोध। तुम्हारे और बालकृष्ण आदि जैसे परिपक्व आश्रमवासियोंने जब प्रार्थनाके समयमें परिवर्तन करनेकी इच्छा प्रकट की तो विरोध न करनेको ही कर्त्तव्य समझकर

  1. १. प्रातः उठने की बातके उल्लेखसे; देखिए " पत्र : आश्रमकी बहनोंको ", ४-१०-१९२७।
  2. २. देखिए पिछला शीर्षक।