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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

सकता। मैंने जो बात कही है, उसके लिए दूरदर्शिताकी आवश्यकता है, और आपको लग सकता है कि मैं किसी स्वप्नद्रष्टा-जैसी बातें कर रहा हूँ। लेकिन मैं आपसे कहता हूँ कि मैं स्वप्नद्रष्टा नहीं हूँ। यदि मैं भारतके लोगोंका विश्वास प्राप्त कर सकूं तो मैं अखिल भारतीय चरखा संघको संसारकी सबसे बड़ी सहकारी संस्था बना देनेकी आशा रखता हूँ। वह समय अभी दूर हो सकता है, लेकिन मैं आशा नहीं छोड़नेवाला हूँ। आपके लिए बस इतना ही न कम, न ज्यादा जरूरी है कि आप अपने ग्राहकों और अपने आसपासके लोगोंका विश्वास प्राप्त रखें। और यह आप तभी कर सकते हैं जब आप सोनेका अंडा देनेवाली बतखको ही मार न डालें। आपको कमसे-कम मुनाफा कमाने के बारेमें आसान और समझमें आने लायक नियम बनाने चाहिए और उन्हें अपने संघके लिए अपरिवर्तनीय और बन्धनकारी बना देना चाहिए। मुझे आशा है कि आप मेरी अपेक्षाओंको पूरा करेंगे।

[ अंग्रेजीसे ]

हिन्दू, ६-१०-१९२७

यंग इंडिया, १३-१०-१९२७

६०. भाषण: राजापालयम्की सार्वजनिक सभामें

४ अक्टूबर, १९२७

मैं आपको अभिनन्दनपत्रों, थैलियों तथा विभिन्न स्थानोंसे प्राप्त सूतके लिए धन्यवाद देता हूँ। मैं इस अत्यन्त महत्त्वपूर्ण खादी केन्द्रमें आ पाया इसकी मुझे बहुत खुशी है। मुझे अनेक कार्यरत कतैयोंसे मिलनेका सौभाग्य और सुख प्राप्त हुआ। उनमें बहुत-सी बूढ़ी औरतें थीं। उनमें से कुछ तो सत्तर बरसकी बूढ़ियाँ हैं। यदि इनमें से कुछकी उम्र वास्तवमें इससे ज्यादा हो तो मुझे आश्चर्य नहीं होगा, क्योंकि वे तो केवल अपनी उम्रका अनुमान ही कर सकती थीं। मैंने उन सबसे पूछा कि उनकी प्रतिमास आमदनी क्या है, और मुझे यह जानकर खुशी और आश्चर्य हुआ कि उनमें से कुछकी आमदनी महीनेमें ४ रुपयेसे ऊपर है। भारतके अन्य भागोंमें कतैये जितना कमाते हैं, यह उससे बहुत ज्यादा है। लेकिन इस कारण आप यह निष्कर्ष नहीं निकालें कि आप यहाँ अन्य स्थानोंकी अपेक्षा ज्यादा मजदूरी दे रहे हैं। [ उनके ज्यादा कमानेका ] कारण यह है कि वे ज्यादा उद्यमी और ज्यादा निपुण हैं और कताईपर ज्यादा समय दे सकती हैं। भारतके अन्य स्थानोंके विपरीत, यहाँ ये महिलाएँ अपनी रुई खुद ही घुनती हैं या अपने रिश्तेदारोंसे धुनवा लेती हैं। इस प्रकार आप देख सकते हैं कि चरखेमें क्या-क्या सम्भावनाएँ छिपी हैं। और इसके बावजूद मैं आपको बताऊँ कि ये कतैये वास्तवमें देशके सबसे गरीब लोग नहीं हैं। इनमें से कुछ तो अच्छे परिवारोंकी हैं। मेरी आँखें तो उन लाखों भूखे लोगोंपर टिकी हुई हैं, जिनके पास अभीतक हम नहीं पहुँचे हैं। इन बहनोंसे मिलनेके बाद मुझे महिलाओंकी एक अन्य सभामें