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सात

दी"(पृष्ठ (पृष्ठ २५२-३) । एक अमरीकी मित्रकी प्रार्थनापर लंका जानेसे पूर्व उन्होंने यंग इंडिया' में एक लेख लिखा था, जिसमें उन्होंने हिन्दूधर्मके प्रति अपने दृष्टि- कोणको स्पष्ट करते हुए इस प्रकार लिखा था : “अध्ययन करनेपर जिन धर्मोको मैं जानता हूँ उनमें मैंने इसे [ हिन्दू धर्मको ] सबसे अधिक सहिष्णु पाया है। इसमें सैद्धांतिक कट्टरता नहीं है, यह बात मुझे बहुत आकर्षित करती है क्योंकि इस कारण इसके अनुयायीको आत्माभिव्यक्तिका अधिकसे-अधिक अवसर मिलता है। हिन्दूधर्म वर्जनशील नहीं है, अत: इसके अनुयायी न सिर्फ दूसरे धर्मोंका आदर कर सकते बल्कि वे सभी धर्मोकी अच्छी बातोंको पसन्द कर सकते हैं और अपना सकते हैं " (पृष्ठ १७१) । कोलम्बोंमें यंग मेन्स क्रिश्चियन एसोसिएशनके समक्ष अपने भाषण में उन्होंने कहा : ईसाका सन्देश, जैसा कि मैं उसे समझता हूँ, उनके 'सरमन ऑन द माउंट' में विशुद्ध और सर्वांग रूपमें निहित है। ... अतः यदि मेरे सामने केवल 'सरमन ऑन द माउंट' और उसकी मेरी अपनी व्याख्या ही होती तो मैं यह कहनेमें नहीं हिचकता कि 'हाँ, मैं ईसाई हूँ । ' लेकिन . . ईसाई धर्मके नामसे जो बहुत-कुछ चीजें मिलती हैं वे "सरमन ऑन द माउंट 'के विरुद्ध हैं" (पृष्ठ २५५-५६) । अपने नवयुवक बौद्ध श्रोताओंको सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा : "पश्चिमसे जो तड़क-भड़कवाली चीजें आपके पास आती हैं उनसे आप चकाचौंध मत हो जाइए । इस अस्थायी दिखावेके कारण आपके पैर लड़खड़ा न जायें। अपने पूर्वजोंकी सादगी- से आप दूर मत हटिए एक ऐसा समय आ रहा है कि जब वे लोग, जो आजकी अन्धी दौड़में पड़कर अपनी आवश्यकताएँ बढ़ाते जा रहे हैं अपने कदम वापस लौटायेंगे । . . . करुणामय और दयालु, सहिष्णुताकी साक्षात् मूर्ति ईश्वर, अर्थ-पिशाच- को केवल चार दिन का चमत्कार दिखाने देता है" (पृष्ठ २५८-५९)। लेकिन अगले ही दिन हमारे अन्तरमें अवस्थित दशानन रावणका हमारे अन्तरमें प्रतिष्ठित राम द्वारा विनाश होना अवश्यम्भावी है। यों कहकर लंकाके श्रमिकोंको उन्होंने राम-रावण युद्धका सांकेतिक अर्थ समझाया (पृष्ठ २६४) । उन्होंने बतलाया कि धर्मोके सच्चे भाई चारेके आधारपर ही एक विश्वसंघकी स्थापना हो सकती है, जिसमें सबकी ओरसे यही हार्दिक प्रार्थना होनी चाहिए कि "जो हिन्दू है वह और अच्छा और सच्चा हिन्दू बने, जो मुसलमान है वह और अच्छा मुसलमान बने और जो ईसाई वह और सच्चा ईसाई बने ' (पृष्ठ ४७९) ।

लंकासे लौटकर गांधीजी शीघ्र ही उड़ीसा गये लेकिन अपने रक्तचाप (ब्लड- प्रेशर) में वृद्धिकी शिकायतके कारण उन्हें अपना उड़ीसाका अधिकतर दौरा मनसूख कर देना पड़ा। उड़ीसाकी स्थितिकी जो कुछ थोड़ी-सी झाँकी उन्हें देखनेको मिली उससे उनका हृदय एक तीव्र मनोव्यथासे द्रवित हो उठा और उन्होंने लिखा: "उड़ीसाका दौरा बहुत दिनोंसे मुलतवी चला आता था और जब उसका अवसर आया भी तो मेरे सन्ताप और मेरी जिल्लतको बढ़ाने के लिए ही" (पृष्ठ ४२२) | उन्होंने वहाँ