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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यात्रियोंसे होती है और प्रथम दर्जेके यात्रियोंमें रेलवेको घाटा उठाना पड़ता है। मैं जानता हूँ कि रेलवे बोर्ड तीसरे दर्जेके यात्रियोंके लिए पर्याप्त जगह मुहैया नहीं करता, न ही वह तीसरे दर्जेके यात्रियोंके लिए रेलवे स्टेशनों या डिब्बोंमें मामूली सफाईका इन्तजाम ही करता है। यदि मेरे पास समय होता तो मैं इन सब चीजोंका तथा अन्य भी कई चीजोंका जिक्र कर सकता था। निस्सन्देह ये बातें ऐसी हैं कि एक सुधारकके लिए इस मामलेकी ओर ध्यान देना लाजिमी हो जाता है। लेकिन आइए कुछ देरके लिए हम आलोचनाकी निगाह अपनी ओर डालें। रेलवे स्टेशनों और डिब्बोंमें सफाईके प्रति हमारी उपेक्षा रेलवे बोर्डकी उपेक्षासे किसी तरह कम नहीं है। और मैं जानता हूँ कि जब मैं तीसरे दर्जेके रेलवे-यात्रियोंके सम्बन्धमें सहायता दस्ते संगठित कर रहा था उस समय तीसरे दर्जेके यात्रियोंको सफाईकी बुनियादी जरूरतोंकी शिक्षा देनेके लिए स्वयंसेवकोंको भरती करनेमें मुझे कितनी कठिनाई हुई थी। रेल- मार्गपर मुसाफिरोंकी यातायातकी स्थितिमें सुधार चाहनेवाले हर व्यक्तिको नगर- पालिकाके कार्योंको और बढ़ाना पड़ेगा। दान घरसे शुरू होता है, इस उदाहरणके अनुसार सुधारकको सबसे पहले यात्रियोंसे ही अपना काम शुरू करना चाहिए और धीरज और नरमीके साथ उनके अन्दर निजी सफाईकी आदतों तथा अपने सहयात्रियों- का खयाल रखनेकी आदतें डालनी चाहिए। मैं इस उपयोगी संघको यह सुझाव देता हूँ कि यह एक विशेष कार्य है, जिसके लिए हर सुधारक गर्व कर सकता है। ...[१]

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, ४-१०-१९२७

५२. पत्र : मीराबहनको

३ अक्टूबर, १९२७

चि० मीरा,

आज सुबह मैं यह दूसरा पत्र लिख रहा हूँ। यहाँ डाक सवेरे ११ बजे निकलती है। पहला पत्र[२] देवदासको था जो बवासीरका ऑपरेशन करानेके बाद डा० राजन्के अस्पतालमें पड़ा है। वह अब पहलेसे बेहतर है। कल ऐसी ही खबर मिली थी।

संयुक्त रसोईका प्रयोग जैसा चल रहा है, उससे कुछ चिन्ता होती है। सुरेन्द्रने मुझे बताया है कि वह ठीक तरह नहीं चल रहा है। यदि तुममें इतनी शक्ति और सामर्थ्य हो तो तुम इसमें हाथ बँटाना। और यदि न हो तो रहने देना। अपने ऊपर किसी किस्मका बोझ मत डालना । वही करना जिससे तुम्हारे मनपर कमसे-कम बोझ पड़े।

  1. १. इसके बाद गांधीजी खादीके बारेमें बोले ।
  2. २. यह उपलब्ध नहीं है।