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पत्र : मीराबहनको

हिन्दू-मुस्लिम प्रश्नके बारेमें पू० मालवीयजीको एक पत्र लिखा है। इस बारेमें कुछ-न-कुछ कार्य योग्य रास्तेसे बनाना चाहिए। आज जो चल रहा है उसमें मैं धर्म नहीं देखता हूँ।[१]

आपका,
मोहनदास

सी० डब्ल्यू० ६१४९ से।
सौजन्य : घनश्यामदास बिड़ला

५०. पत्र : मीराबहनको

२ अक्टूबर [ १९२७ ]

[२]

चि० मीरा,

तुम्हारा पोस्टकार्ड और रेलगाड़ीमें लिखा हुआ पत्र मिला। तुम्हारे पत्रके लिए जितना उत्सुक इस बार रहा हूँ, उतना कभी नहीं रहा था, क्योंकि उस गम्भीर ऑपरेशनके बाद मैंने तुम्हें बहुत ही जल्दी भेज दिया था। मगर तुम्हें भेज देना उस ऑपरेशनका ही एक भाग था। बेचारा अण्णा ! वह भी मुझसे कहता है कि तुम उदास थीं। वह चाहता है कि मैं तुम्हें तसल्ली दूं। जमनालालजी कहते हैं कि मुझे तुम्हें अपने साथ रखना चाहिए था। खैर, तुम्हें उन सबके डर झूठे साबित कर देने हैं और बिलकुल स्वस्थ और प्रसन्न रहना है। तुम कल रातको मुझे सपनेमें दिखती रही और जिन मित्रोंके पास तुम भेजी गई हो, उन्होंने मुझे खबर दी कि तुम्हें बेहोशीका दौरा पड़ गया था, मगर खतरेकी कोई बात नहीं थी। उन्होंने कहा, आपको चिन्ता करनेकी जरूरत नहीं। जो कुछ इन्सान कर सकता है, वह सब हम कर रहे हैं। " और इस सपनेसे जब मैं जागा तो मेरा मन अशान्त था और मैंने प्रार्थनाकी कि भगवान तुम्हें हर तरहकी हानिसे बचाये । इस परिस्थितिमें तुम्हारा पत्र पाकर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई।

तुम्हारा कोई अपमान नहीं हुआ। तुमपर कोई पहरा नहीं है। छगनलाल और कृष्णदास तुम्हारी सेवा करने और तुम्हें आराम देनेके लिए तैनात किये गये हैं। मैं जानता हूँ कि तुम्हारी घबराहट दूर हो जायेगी | हिन्दीका भूत अब तुम्हें नहीं सतायेगा। यद्यपि अबतक तुमने बहुत कुछ हिन्दी सीख ली है, परन्तु तुम हिन्दीका एक शब्द भी न बोलो तो मुझे परवाह नहीं। इस प्रकार इस मामले में भी निराशाका

  1. १. जब यह पत्र लिखा गया उसते पहलेके छः महीनों के भीतर २५ हिन्दू-मुस्लिम दंगोंकी वारदातोंका पता चला था जिनमें १०३ व्यक्ति मारे गये थे और १,०८४ व्यक्ति घायल हुए थे।
  2. २. ऑपरेशन के बाद मीराबहनके भेज दिये जानेके उल्लेखके आधारपर वर्षका निर्णय किया गया है; देखिए "पत्र : मीरवहनको ", २८-९-१९२७ ।