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३९. पत्र : सातवलेकरको

२१ जून,१९२७

शारीरिक बल इत्यादि संग्रह और वर्धनके लिए ब्रह्मचर्य अनिवार्य वस्तु नहीं है, ऐसा सार्वजनिक अनुभव है। इस कारण ब्रह्मचर्य के साथ शरीर बलका घनिष्ठ सम्बन्ध बताने में ब्रह्मचर्यकी महिमा भूल जानेका भय रहता है । आसुर देशोंसे हम नीचे गये हैं । इसका कारण हमारी अतोभ्रष्ट ततोभ्रष्ट स्थिति है । सब आसुर प्रथाको हम स्थान देने से डरते हैं। देवीको आचार में लाने का बल नहीं है - आसुरीको आचार में लाने से डरते हैं। इसी कारण आज देशमें आसुरी सम्प्रदाय चलानेकी कोशिश हो रही है ऐसा में तो हर जगह देख रहा हूँ । परन्तु वह सम्प्रदाय किसी तरह से चल ही नहीं सकता । जनता उसको हजम नहीं कर सकती । और दैवी सम्प्रदाय में आचारकी शिथिलता होनेसे जनता ऐसीकी वैसी ही रह जाती है। इसी कारण मेरा तो यह प्रयत्न है कि हम जो देवी मतका अवलम्बन करते हैं वे आचार शुद्ध बने और किसी तरहसे आसुरका अनुकरण से बच जायें ।

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।

सौजन्य : नारायण देसाई

४०. पत्र : देवी वेस्टको

कुमार पार्क,बंगलोर

२२ जून,१९२७


प्रिय देवो,

तुम्हारा पत्र मिला । मेरा स्वास्थ्य सुधर रहा है, हालांकि मैं अब भी कमजोर हूँ और एक ठण्डे स्थान में स्वास्थ्य लाभ कर रहा हूँ ।

हाँ, मणिलाल अभीतक फीनिक्स में है और वह 'इंडियन ओपिनियन' की देख- भाल कर रहा है । अब उसकी पत्नी[१] उसके काममें हाथ बँटा रही है । मणिलालने लिखा है कि उसने कम्पोजिटरका काम सीख लिया है । वह बड़ी अच्छी लड़की है और यदि तुम उससे मिल पातीं तो वह तुम्हें अवश्य पसन्द आती । मणिलाल उसको बहुत मानता है और दोनों बहुत ही सुखी जान पड़ते हैं । मणिलालके पास अब सब नये आदमी हैं ।

हाँ, मीराबाई अब भी मेरे साथ है । इस समय तो वह मेरे पास बंगलोर ही आ गई है। वह कुछ एक दिन यहाँ मेरे साथ रहनेको आई है । बादमें वह अपनी हिन्दी दुरुस्त करने के लिए आश्रमकी एक शाखा में चली जायेगी ।

  1. सुशीला गांधी ।