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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

है कि बम्बईनिगमने ११,००० रुपयेकी खादी खरीदी और वह किंग एडवर्ड मेमोरियल अस्पतालमें काममें लाई गई। इस विवरण में खरीदी हुई चीजोंकी सूची दी गई है। इन चीजोंमें गद्दे, खोल, काँचोंके झाड़न, पैरोंकी पट्टियाँ, मुँह पोंछने के तौलिये, आड़ पर्दे, खिड़कियोंके पर्दे, पायजामे, घाघरे, लबादे, मेजपोश, सफेद कम्बल, पलंगकी चद्दरें बड़े तौलिये, सर्जनोंके जूते, सर्जनोंके चोगे, सर्जनोंके कपड़े आदि हैं। यदि सब सरकारी अथवा निजी अस्पतालों में एवं इसी प्रकारकी अन्य सहयोगी संस्थाओंमें खादीके ही कपड़े खरीदे जायें तो इस समय भारतमें वर्ष भरमें जितनी खादी बनती है, वह सबकी सब सिर्फ इन्हीं में खप जायेगी। इसका अर्थ यह नहीं है कि इससे फिर [पहनने के लिए] खादी बचेगी ही नहीं। जब खादीकी माँग स्वाभाविक हो जायेगी और घीकी तरह खादी आम जरूरतकी चीज बन जायेगी तब खादीकी बिक्रीका इन्तजाम करनेके लिए खादी-कार्यकर्त्ताओंकी जरूरत नहीं रहेगी। तब सब खादी-कार्यकर्ता केवल उत्पादनके कार्यमें ही लगा दिये जायेंगे; इससे खादीका असीमित उत्पादन होने लगेगा और हमारी खादीकी माँग पूरी होती रहेगी। सरकारी संस्थाएँ भी पूरे हृदयसे खादीका प्रयोग न करें इसका तो कोई कारण नहीं है; किन्तु मेरी सम्मतिमें यह इस बातका सूचक होगा कि सरकारका हृदय परिवर्तन हो रहा है। स्वराज्यवादी कौंसिल-सदस्य इस बारे में कमसे-कम सरकारकी परीक्षा तो कर ही सकते हैं।

खादी-कार्यकर्त्ताओंसे

श्रीयुत विठ्ठलदास जेराजाणीने आम तौरपर मिलनेवाली खादीकी धोतियोंकी इस खराबीकी ओर ध्यान खींचा है कि उनकी किनारियाँ फट जाती हैं। धोतियों और साड़ियों में सबसे ज्यादा जोर तो किनारियोंपर ही पड़ता है। इसलिए उनका सुझाव है कि किनारियोंकी बुनावटपर थोड़ा ध्यान देनेसे यह दोष दूर किया जा सकता है। इसके लिए किनारी आधा इंच या पौन इंच, बटदार दुहरे धागेसे बुनी जानी चाहिए। किनारीका सूत खास तौरसे मजबूत चुना जाना चाहिए और इस चुने हुए सूतका बटा हुआ धागा लेकर ऊपर बताइ विधिसे किनारी बुनी जानी चाहिए। यदि किनारीका धागा खास तौरसे तैयार करा लिया जाये और जिस तरह मामूली सूत बुनकरोंको दिया जाता है उसी तरहसे वह भी दिया जाने लगे तो इस काम में आसानी रहेगी और खर्च भी कम पड़ेगा। इस उद्देश्यकी पूर्तिके लिए प्रत्येक कताईकेन्द्रको किनारीका सूत जमा रखना पड़ेगा। कई केन्द्रोंमें ऐसा किया भी जा रहा है, किन्तु सभी जगह ऐसा नहीं हो रहा है। खादीका कार्य बढ़ने के साथ-साथ यदि बिना किसी अपवादके सभी धोतियाँ और साड़ियाँ मजबूत किनारीकी नहीं बनाई जायेंगी तो हमारे पास शिकायतोंकी भरमार हो जायेगी। जो लोग खादीके विशेष प्रेमी हैं वे तो जैसी खादी मिले वैसीमें सन्तोष कर लेते हैं; किन्तु जो अन्य लोग अब खादी खरीदने लगे हैं। और जिनकी संख्या तेजीसे बढ़ रही है, वे किसी घटिया चीजसे सन्तुष्ट नहीं होंगे। वे तो यह आग्रह करेंगे कि खादीमें मजबूती, खूबसूरती, तरह-तरहके नमूने और सस्तापन सभी बातें हों। हमें लोकरुचि और जनताकी माँगको ध्यानमें रखकर यथासम्भव ऐसी व्यवस्था करनी ही पड़ेगी।