पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 33.pdf/१४६

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

  ही है कि हम जीवन और मरणके रहस्योंको नहीं जानते। मैं यह चाहता हूँ कि आप दोनों इस कमजोरीसे छुटकारा पा लें। आप जबतक फिरसे पूरी तरह सँभल न जायें, कृपया वहाँसे कहीं जाने की बात न सोचें। सस्नेह,

आपका,
बापू

अंग्रेजी (जी॰ एन॰ १६३४) की फोटो नकलसे ।

९८. पत्र: क्षितीशचन्द्र दासगुप्तको

रेलगाड़ीपर
[१९ फरवरी, १९२७ के पश्चात्][१]

प्रिय क्षितीशबाबू,

मुझे आजतक और सतीशबाबूका पत्र मिलनेतक यह नहीं मालूम था कि आपका कोई बेटा नहीं है और अनिलको आप अपने बेटेके समान मानकर अपना पूरा स्नेह उसीपर बरसा रहे हैं। अब मैं आपकी वेदना पहलेकी अपेक्षा अधिक समग्र रूपमें समझ सकता हूँ। ऐसे मौकोंपर कोई सान्त्वना दे पाना कठिन होता है। वह तो स्वयं अपने भीतरसे ही आती है। ईश्वर करे कि आपका सारा ज्ञान और विश्वास आपको हिम्मत और आशा बँधानेमें आपकी मदद करे। यदि आत्माके अमरत्वमें हमारा विश्वास-भर सच्चा हो, तो फिर मृत्युके जैसी कोई चीज कुछ महत्त्व नहीं रखती। ईश्वर आपको शान्ति और शक्ति प्रदान करे।

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

अंग्रेजी (जी॰ एन॰ ८९२३) की फोटो-नकलसे।

  1. देखिए पिछला शीर्षक।