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पत्र: सतीशचन्द्र दासगुप्तको

  मैं बम्बई ५ तारीखको पहुँचूँगा, यह अब निश्चित हो गया है।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (जी॰ एन॰ २८८५) से।

९६. पत्र: प्रभुदयालको

दौरेपर
१९ फरवरी, १९२७

भाई परभुदयालजी,

आपका पत्र मेरे साथ घूम रहा है। आजहि मैं उसे पहोंच सकता हुँ।

जगत कितना भी पलटा खाय परंतु यदि आपको निश्चय है कि खद्दरमें स्वार्थके साथ परमार्थ है और अन्य वस्त्रमें केवल स्वच्छंद हि है तो आप खद्दरके हि कपड़ोंसे संतुष्ट रहें।

आपका,
मोहनदास गांधी

मूल (जी॰ एन॰ १००६३) से।

९७. पत्र: सतीशचन्द्र दासगुप्तको

[१९ फरवरी, १९२७ के पश्चात्][१]

प्रिय सतीश बाबू,

मुझे आपका दुःख भरा पत्र मिला। मैं समझता हूँ कि यह पत्र आपने दुःखका भार हलका करनेके लिए लिखा है। कहा जाता है कि देवता जिन्हें बहुत अधिक प्यार करते हैं, उन्हें उठा लेते हैं। मानव-मनने शोकको शमित करनेके कई तरीके निकाले हैं। तथ्य वस्तुतः यह है कि शोक करना ही नहीं चाहिए। परन्तु ऐसा करना, विशेषकर हिन्दू-समाजमें, लगभग मनुष्यकी शक्तिसे परे है। कृपया हेमप्रभादेवीसे कहिए कि वह ऐसा न सोचें कि यदि अनिल जीवित रहता तो वह क्या कुछ करता। उस शरीरमें उसका कार्य समाप्त हो गया था। अनिलकी आत्मा असाधारण थी। उसे बहुत उत्कृष्ट कार्य करना था और वह शरीर छोड़ गई। हमें अपनी उस हानिपर शोक नहीं करना चाहिए, जिससे संसारका हित हो सकता हो। यह अच्छा

  1. गांधीजीके १९ फरवरीको लिखे संवेदनापत्रका सतीशचन्द्र दासगुप्तने जो उत्तर दिया यह पत्र उसके प्राप्त होनेपर लिखा गया प्रतीत होता है।