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९२. भाषण: अहमदनगरमें[१]

१८ फरवरी, १९२७

मैं अभी-अभी राष्ट्रीय पाठशाला होकर आया हूँ। मैंने लगभग एक घंटेतक एक कड़े निरीक्षककी तरह संस्थाके सारे प्रबन्ध और कार्य-प्रणालीका निरीक्षण किया है और उसे सन्तोषजनक पाया है। मैंने विद्यार्थियोंसे दिल खोलकर सोत्साह बातचीत करते हुए पूरी तरहसे उनको जाँच लिया है और उन्हें कुशाग्रबुद्धि तथा हाजिर जवाब पाया है। संक्षेपमें अहमदनगर राष्ट्रीय पाठशालाके रूपमें मैंने अन्धकारसे भरे बड़े मरुस्थलके बीच एक सुन्दर छोटा-सा नखलिस्तान ही देखा है।[२]

[भाषण जारी रखते हुए] श्री गांधीने कहा कि यदि अहमदनगर जिला गरीब है, तो शेष भारत और भी गरीब है। सैकड़ों-हजारों स्त्री-पुरुषोंके पास किसी भी तरहका रोजगार नहीं है और वे लगभग भूखे रहते हैं। मेरे मनमें इसपर जरा भी सन्देह नहीं है कि केवल खादीका काम ही इन लोगोंको कुछ रोजगार और रोटी दे सकता है। उन्होंने सभी उपस्थित लोगोंसे अपील की कि आप अपनी शक्तिभर मेरे इस महान कार्यके लिए मुझे धन दें।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दू, १९-२-१९२७

९३. पत्र: सतीशचन्द्र दासगुप्तको

मीराजगाँव
१९ फरवरी, १९२७

प्रिय सतीशबाबू,

तो आप और हेमप्रभादेवी पूरी तरहसे कसौटीपर कसे जा रहे हैं। आप इस बहुत ही कठिन परीक्षाका[३] सामना कर लेंगे और उसमें सफल होकर निकलेंगे। 'भगवद्गीता' का दूसरा अध्याय बार-बार पढ़िये और सच्चे योद्धाओंकी तरह, जैसे कि आप हैं, संघर्षका सामना कीजिए। अब आप लोगोंपर अपना ध्यान रखनेकी जिम्मेदारी दुगुनी हो गई है। ईश्वरके उद्देश्योंके लिए जो-कुछ आपके पास न्यासके

  1. यह भाषण नगरपालिका, जिला बोर्ड और हिन्दूसभा द्वारा दिये गये अभिनन्दनपत्रोंके उत्तरमें दिया गया था।
  2. अहमदनगर राष्ट्रीय पाठशालाके प्रधानाचार्य एच॰ वी॰ हिरे द्वारा १९२८ में जारी की गई एक छपी पुस्तिकाकी माइक्रोफिल्म (एस॰ एन॰ १४८४१) से।
  3. अभिप्राय उनके पुत्र अनिलको मृत्युसे है।