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एक बड़े कतैये

  राष्ट्रके ६० करोड़ रुपये हर साल बचा लें, और यह अवश्य किया जा सकता है, तो इतनी बड़ी रकम राष्ट्रकी आमदनीमें जुड़ जाती है। ऐसा करनेसे हमारे गाँव स्वतः संगठित हो जाते हैं। और चूँकि इससे मिलनेवाली करीब-करीब पूरी ही रकम मुल्कके गरीबसे-गरीब लोगोंमें बँटेगी, यह क्रिया इतने धनके न्याययुक्त एवं समविभाजनकी योजना बन जाती है। अगर इसमें इस विभाजन क्रमका महान नैतिक मूल्य जोड़ दिया जाये तो चरखेकी बातका विरोध किया ही नहीं जा सकता।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १७-२-१९२७

९०. एक बड़े कतैये

जब बिहारका दौरा खत्म करके मैं मध्य-प्रान्त जा रहा था, उस समय मुझे कलकत्तेमें श्रीयुत योगेश्वर चटर्जीकी मृत्युका समाचार मिला। मुझे उन्हें एक ऐसे कतैयेके रूपमें जाननेका सौभाग्य प्राप्त हुआ था, जिनसे ढाकेकी शबनमके नामसे मशहूर मलमलकी कलाको पुनरुज्जीवित कर सकनेकी आशा की जाती थी। मैंने खादी-प्रतिष्ठानके क्षितीश बाबूको तुरन्त ही लिखा[१] कि वे मुझे उनका जीवन वृत्तान्त लिख भेजें। मुझे वृत्तान्त मिल गया है और मैं उसे पाठकोंके सामने रखता हूँ[२]:

२४ परगना जिलेके पानपुर गाँवके श्रीयुत जटिलेश्वर चटर्जीके पुत्र श्री योगेश्वर चटर्जीकी मृत्यु ३० जनवरी रविवार को सुबह हुई। अब उनके घरमें उनकी विधवा पत्नी, एक सालकी बच्ची, एक छोटा भाई और बूढ़े पिता हैं।...

योगेश्वर बाबू बी॰ ए॰ तक पढ़े थे और कुछ दिन शिक्षक रहे थे। वे उसके बाद पूर्वी बंगाल रेलवेमें नौकर हो गये और वहाँ सात साल सेवामें रहे।...मरनेके समय वे ३५ सालके थे।

उन्होंने असहयोगके जमानेमें कातना शुरू किया था। वे बड़े उत्साही कतैये थे। गौहाटी प्रदर्शनीमें प्रतिष्ठानने २०० अंकके सूतकी जो मलमल रखी थी, उसका सूत योगेश्वर बाबूने काता था। कानपुर प्रदर्शनी और गौहाटी प्रदर्शनीके बीच एक सालके अरसेमें ही उन्होंने उक्त मलमलके लिए २०० अंकका सूत काता और इसके साथ-साथ उन्होंने १०० अंकका इतना सूत भी काता कि उसकी दो धोतियाँ बनाई गई। इनमेंसे एक धोती आचार्य रायके लिए और दूसरी उनके पिताके लिए थी।

  1. देखिए "पत्र: क्षितीशचन्द्र दासगुप्तको", १३-२-१९२७।
  2. अंशतः उद्धृत।