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८९. शून्यमें से

जब हम चरखेकी सफलताकी विस्तृत सम्भावनाओंपर विचार करते हैं तब हमें यह सोचकर आश्चर्य होता है कि चरखेकी सीधी-सी बातको सर्वग्राह्य बनानेमें इतनी देर क्यों लग रही है। एक लैटिन कहावत है जिसका अर्थ यह है कि 'शून्यमें से शून्य ही प्राप्त होता है'। लेकिन ऐसा लगता है कि चरखा कुछ नहीं तो इस कहावतके शब्दार्थको तो गलत साबित करता ही है, क्योंकि वह किसी उपयोगी चीजको बरबाद किये या हटाये बिना ही राष्ट्रके फाजिल और बेकार जानेवाले समयका उपयोग करनेका प्रयत्न करता है।

यह बेकारी, चाहे अपने आप अख्तियार की गई हो, चाहे लादी गई हो, राष्ट्रकी आत्माकी ही हत्या कर रही है। मैं गाँवोंमें जितना अधिक प्रवेश करता जाता हूँ मेरे हृदयमें किसानोंके चेहरोंपर हवाइयाँ उड़ती देखकर उतनी ही अधिक चोट लगती है। उनके पास अपने बैलोंके साथ-साथ मशक्कत करनेके अलावा कोई दूसरा काम नहीं है। इस कारण वे लगभग उन्हींके जैसे बन गये हैं। यह एक बड़े ही दुःखकी बात है कि हमारे लाखों देशवासी अपने हाथोंको हाथोंकी तरह इस्तेमाल नहीं करते। प्रकृतिने हम इन्सानोंको जो विशेषताएँ प्रदान की हैं, उन्हें हम कतई काममें नहीं लाते, इसलिए प्रकृति हमसे हमारी इस भूलका भयंकर बदला ले रही है। हम उसके दिये हुए वरदानोंका पूरा लाभ उठानेसे इनकार करते हैं। कुछ अन्य बातोंके साथ-साथ, हाथोंके इस कुशल व्यवहारके आधारपर ही हम पशुओंसे भिन्न हैं। किन्तु हममें से लाखों तो हाथोंको पैरोंकी ही तरह इस्तेमाल करते हैं। फल यह होता है कि प्रकृति हमारे शरीर तथा मस्तिष्क——दोनोंको पूरा पोषण नहीं देती।

चरखा ही समयके इस विवेकहीन विनाशको रोक सकता है। चरखा तत्काल यह काम कर सकता है। इस कामके लिए बहुत ज्यादा दौलत या बुद्धिकी भी जरूरत नहीं है। इस बरबादीके कारण हम लोग मरे हुए-से जी रहे हैं। हममें जीवन फिर आ सकता है—— लेकिन तभी, जब प्रत्येक घर फिरसे कताईका कारखाना और प्रत्येक गाँव हाथ-बुनाईका कारखाना बन जाये। इतना होते ही हमारी पुरानी ग्रामीण कला पुनः जीवित हो उठेगी और फिर लोकगीत गूँजने लगेंगे। अधभूखे राष्ट्रका न तो कोई धर्म रह जाता है, न कला, न कोई संगठन।

चरखेके खिलाफ उसके आलोचकों द्वारा केवल एक ही आपत्ति उठाई गई है, और वह यह है कि चरखेसे आमदनी नहीं होती है। लेकिन अगर चरखेसे एक पैसा रोज भी कमाया जा सकता है तो यह देखते हुए कि एक औसत अमेरिकी और अंग्रेजकी रोजाना आमदनी क्रमशः चौदह और छः रुपये है, जबकि हमारी रोजाना औसत आमदनी डेढ़ आना फी आदमी है, चरखा काफी आमदनी देता है। चरखा शून्यमें से भी कुछ पैदा करनेका एक प्रयास है। क्योंकि अगर हम चरखेके द्वारा