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पत्र: सतीशचन्द्र दासगुप्तको

  करो तो मैं वह करूँगा। उसी प्रकार मुसलमान भाइयोंके साथ, या पण्डितजी[१] या केलकरके[२] साथ, अदला-बदलीका सौदा करना नहीं चाहता। मुसलमानोंसे हम किसलिए डरें? हमें तो परमेश्वरसे ही डरना चाहिए? मनुष्यसे डरना ही नहीं चाहिए। मनुष्यसे धोखा खानेका भय ही नहीं रखना चाहिए। ईश्वरपर भरोसा रखकर, लोग ठगेंगे तो भी वह देख लेगा ऐसा विश्वास रखकर, स्वधर्मका पालन करते जाना चाहिए।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २७-२-१९२७

८८. पत्र: सतीशचन्द्र दासगुप्तको

[१७ फरवरी, १९२७ से पूर्व][३]

प्रिय सतीश बाबू,

आप कुशलपूर्वक ही होंगे। अब चूँकि आप कलकत्तासे बाहर चले गये हैं, आपको काफी समय तक विश्राम अवश्य करना चाहिए और पूरी तरह स्वस्थ हो जाना चाहिए। आप प्रतिष्ठानके मामलोंकी चिन्ता न करें। जहाँतक आपके हिस्सेके कामका सम्बन्ध है, उन मामलोंको ईश्वरके भरोसे छोड़ दें। आखिरकार खादीका काम एक आदमीके बसका तो है नहीं और न हो सकता है। यदि ईश्वरकी दृष्टिमें यह कार्य प्रिय है, तो वह इसके लिए अपने आप निमित्त जुटायेगा और जिन्हें निमित्त रूप बनायेगा, उन्हें ठीक रखेगा। हम सबको ऐसा महसूस करना चाहिए जैसे यन्त्र कुछ भी नहीं है उसी तरह हम भी कुछ नहीं हैं। यन्त्रका चालक ही सब-कुछ है। हम 'गीता' और 'रामायण' की इस शिक्षाको व्यवहारमें लायें तो हमारी चिन्ता समाप्त हो जायेगी।

कृपया मुझे अपने सम्बन्धमें सब समाचार लिखते रहें।

[मेरे कार्यक्रमकी] तारीखें नीचे दी जा रही हैं:[४]

सस्नेह,

आपका,
बापू

अंग्रेजी (जी॰ एन॰ १६३३) की फोटो-नकलसे।

  1. मोतीलाल नेहरू। देखिए यंग इंडिया, ३-१२-१९२७।
  2. नृसिंह चिन्तामणि केलकर।
  3. दौरेके कार्यक्रमसे।
  4. यहाँ नहीं दी जा रही हैं। इनके लिए देखिए "पत्र: मीराबहनको" १३-२-१९२७।