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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नाम नहीं है। 'वेद' तो हमारे हृदयमें है। और इस हृदयवासी 'वेद' ने मुझे बतलाया है कि यम-नियमादिका पालन कर और कृष्णका नाम ले। मैं विनयके साथ, परन्तु सत्य कहता हूँ कि हिन्दू-धर्मकी सेवा, हिन्दू-धर्मकी रक्षाको छोड़कर, मेरी दूसरी प्रवृत्ति ही नहीं है। हाँ, उसे करनेकी मेरी रीति भले ही निराली हो।

[५] आज जो पैसा आपको मिलेगा उसे देनेवाले अधिकांशमें विलायती कपड़ोंके ही व्यापारी हैं। क्या आप यह जानते हैं कि आपको वे जो पैसा देते हैं सो आपके प्रेमके कारण देते हैं, खादीके प्रेमके कारण नहीं?

केवल प्रेमवश दिया गया मुझे एक पैसा भी नहीं चाहिए। मैं चाहता हूँ कि मेरा काम समझकर लोग मुझे पैसा दें। प्रेमसे आप मुझे दूसरी वस्तु दे सकते हैं, प्रेमसे आप मुझे अपना विलायती कपड़ा दे सकते हैं, पर पैसा नहीं चाहिए। सच तो यह है कि व्यापारी लोग मुझे पैसा देते हैं तो यह समझकर कि मेरा व्यापार जमे तो उससे उनकी या देशकी हानि नहीं है। वे जानते हैं कि अन्तमें उन्हें खादीका ही व्यापार करना पड़ेगा। वे इसे खूब समझते हैं, परन्तु उनमें आज निश्चयका बल नहीं है। वे तो मुझे ईश्वरसे प्रार्थना करनेको कहते हैं कि उन्हें इसके लिए बल मिले। इस बीच वे धन देकर इस प्रवृत्तिका पोषण करते हैं। वे मुझे फुसलानेको धन नहीं देते।

[६] आप केवल खादीका ही काम करते हैं और दूसरे इतने ही या इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण राजनीतिक कामोंकी अवहेलना क्यों करते हैं?

मैं कह चुका हूँ कि मेरा कार्यक्षेत्र मर्यादित है। दुर्योधनने भी अपने योद्धाओंकी मर्यादाका वर्णन किया था। 'यथाभागमवस्थिताः'——सभीको अपने-अपने स्थानपर रहनेको और अपने स्थानपर रहकर भीष्मकी रक्षा करनेको कहा था। 'गीता' का वर्णाश्रम धर्म यही कहता है। वह सबसे अपनी-अपनी मर्यादा समझनेको कहता है। हिन्दुस्तानको अगर मुझसे काम लेना है तो उसे मेरी मर्यादा जान लेनी होगी। यह सम्भव हो सकता है कि मैं कोई दूसरा काम भली प्रकार कर सकूँ, पर उसे दूसरे भी करते हैं। और मेरा विश्वास है कि इसे मैं जितनी अच्छी तरह कर सकता हूँ उतनी अच्छी तरह कोई और नहीं कर सकता। अपने इसी विश्वासके कारण मैं इसे कर रहा हूँ। मुझे सत्याग्रह पसन्द है। मैं वह करना भी चाहता हूँ, परन्तु उसके लिए अनुकूल वातावरण कहाँ है? खादीके द्वारा मैं वह वातावरण पैदा करनेका प्रयत्न कर रहा हूँ। सत्याग्रह तो मेरी प्राणवायुके समान है, परन्तु उसे खादीके बिना अशक्य मानता हूँ।

[७] जरा यह तो बतलाइएगा कि इस दौरेमें आपको मुसलमानोंसे प्रत्यक्ष कितनी सहायता मिली है?

यह बात सच है कि आज मुसलमान मुझे खादीके काममें लगभग कोई मदद नहीं दे रहे हैं। पर उससे क्या होता है? मैं तो अपनी स्त्री या भाईके साथ व्यापार नहीं करता। घरमें उनके साथ यह कहकर सौदेबाजी नहीं करता कि तुम यह