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भाषण: नासिकम

था। जब दूसरोंको ऐसा लगा कि मैं उसके साथ पक्षपात कर रहा हूँ, तब कहीं उसकी समझमें आया और मैंने भी यह देखा कि मैं तो उसके साथ न्याय ही कर रहा था, उससे अधिक कुछ नहीं! मुसलमान जब मुझपर आक्षेप करते हैं तो इससे शायद यह सूचित होता है कि मैं उनके साथ अभी पूरा न्याय नहीं कर रहा हूँ। मुझे जवाब देनेकी आवश्यकता क्यों होनी चाहिए? मेरे तो चौबीसो घंटे श्रीकृष्ण भगवानको समर्पित हैं। वे ही मेरी रक्षा करते हैं और मैं दासानुदास श्रीकृष्ण भगवानसे सदा प्रार्थना करता हूँ कि, 'हे कृष्ण, मेरी ओरसे जो जवाब देना हो, सो तू ही दे आ।'

[४] आपने खिलाफतकी लड़ाई तो जी-जानसे लड़ी थी। उसी प्रकार आज आप हिन्दू संगठनके लिए क्यों नहीं जुट जाते?

खिलाफतके लिए प्राणतक अर्पण करनेकी मेरी प्रतिज्ञा थी। परधर्मी -के लिए जितना हो सका मैंने किया। मैं मानता था, और अब भी मानता हूँ कि मेरी इस सेवासे गोरक्षा होगी। आप पूछेंगे कि 'क्या गोरक्षा हुई?' यदि गोरक्षण नहीं हुआ पर उससे मुझे क्या? मुझे तो प्रयत्न करनेका ही अधिकार है। फल देनेका अधिकार तो भगवान श्रीकृष्णको ही है। भगवानने मुझसे कहा कि मुहम्मद अलीसे मिलो, शौकत अलीसे मिलो, उनके साथ काम करो। मैंने वही किया। उन्हें जितनी मदद दी जा सकी, दी। इसके लिए मुझे जरा भी पछतावा नहीं है। ऐसा प्रसंग फिर आये तो मैं फिर यही करूँगा। 'गीता', 'भागवत्' आदि धर्मग्रंथ मुझे यही सिखलाते हैं। लोग मेरी निन्दा करें, मेरा अपमान करें; मैं उसके जवाबमें उनकी निन्दा या अपमान करनेवाला नहीं हूँ। मैं तो वहीं करूँगा जो करनेका उपदेश तुलसीदासने दिया है, यानी तपश्चर्या। मेरा स्वभाव ही ऐसा है। मुझसे दूसरी बात तो हो ही नहीं सकती? 'गीता' ने कहा है कि सब जीव अपनी-अपनी प्रकृतिके अनुसार ही चलते हैं, निग्रह क्या करेगा। इसलिए मुझे तो तपश्चर्या करनी है, मेरे लिये तो वही एक मार्ग है। लेकिन मैं भविष्यवाणी करता हूँ कि किसी दिन जब मुसलमानोंके दिलमें खुदा बसेंगे, और हिन्दुओंके समान वे भी गोरक्षा करगे, तब आप कहेंगे कि इस गोरक्षाका श्रेय अधिकांशतः हमसे पहले हो गये गांधी नामके एक पागलको है।

मैं नहीं मानता कि आजके जैसी तबलीग या शुद्धि या धर्म-परिवर्तनकी आज्ञा इस्लाम या हिन्दू-धर्म या ईसाई-धर्ममें है। तब मैं शुद्धिमें किस प्रकार भाग ले सकता हूँ? तुलसीदास और 'गीता' तो मुझे यह सिखाते हैं कि जब तुम्हारे ऊपर या तुम्हारे धर्मपर हमला हो तब तुम आत्मशुद्धि कर लेना। और जो पिण्डके लिए ठीक है वह ब्रह्माण्डके लिए भी ठीक है। आत्मशुद्धिका, तपश्चर्या करनेका मेरा प्रयत्न चौबीसों घंटे चल रहा है। पार्वतीके नसीबमें अशुभ लक्षणोंवाला पति ही था। ऐसे लक्षण होनेपर भी शुभ वर तो एक शिवजी ही थे। पार्वतीने उन्हें अपने तपोबलसे पाया। संकटके समयमें ऐसा ही तप हिन्दू-धर्म सिखलाता है। हिमालय धर्मकी इस आज्ञाका साक्षी है——वही हिमालय, जिसके ऊपर हिन्दू-धर्मकी रक्षाके लिए लाखों ऋषि-मनियोंने अपने शरीरको गला डाला है। 'वेद' कागजपर लिखे अक्षरोंका