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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अर्पण कर रखी है। मुझे यह अभिमान नहीं कि सारा काम मैं ही करूँ। जिस काममें पण्डित मालवीयजी और लालाजीके समान अनुभवी नेता लगे हों, उसमें मुझे और अधिक क्या करना है ? जिस समय कलकत्तेमें श्रद्धानन्द स्मारकके लिए ५० हजार रुपया इकट्ठा किया गया, उस समय मालवीयजीकी आज्ञासे मैं वहाँ हाजिर रहा था। इससे अधिक किसी बातकी आशा मालवीयजीने मुझसे रखी नहीं। मेरे कार्यक्षेत्रकी मर्यादा बँधी हुई है। मैं भगवान श्रीकृष्णके, 'गीता' के, उपदेशानुसार चलनेका प्रयत्न करनेवाला एक अल्प मनुष्य हूँ और मैं जानता हूँ कि वह क्या है, फिर वह कितनी ही अल्प कोटिका क्यों न हो:

श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्।
स्वधर्मे निधन श्रेयः परधर्मोभयावहः ॥

दूसरा धर्म चाहे जितना अच्छा लगता हो पर मेरे लिए मेरा मर्यादित धर्म ही भला, दूसरा भयावह है।

[२] आज आप जो चन्दा इकट्ठा कर रहे हैं, वह तो केवल खाबीके लिए ही है न? अगर ऐसा ही हो तो आप उसका उपयोग किस प्रकार करेंगे?

हाँ, यह धन केवल खादीके लिए ही है; क्योंकि यह अखिल भारतीय देशबन्धु स्मारक कोषके लिए इकट्ठा किया जा रहा है। इस कोषके साथ देशबन्धुका नाम इसलिए लगाया गया है कि देहान्तके थोड़े ही दिनों पहले उन्होंने खादी-कार्यके द्वारा ग्राम-संगठनकी योजना तैयार की थी और खादी-कार्य उनको प्रिय था। खादीके लिए चन्दा उगाहकर उसकी व्यवस्था करनेके लिए ही अखिल भारतीय चरखा संघ बनाया गया है। इस कोषकी पाई-पाईका हिसाब रखा जाता है। जो कोई व्यक्ति चाहे उसे देख सकता है। इस संघका एक कार्यवाहक मण्डल है, हिसाब जाँचने- वाले हैं, निरीक्षक भी हैं। इस संघने अभी देशके सामने खादी सेवक संघकी योजना पेश की है। आप कहेंगे कि मान लिया, आपका मण्डल तीस रुपल्लियाँ देगा। उससे भला क्या होगा? हाँ, यह ठीक है; हमारा मण्डल तो भिखारियोंका मण्डल ठहरा, क्योंकि बहुतसे गरीब भिखारियोंसे पैसा लेकर यह स्थापित हुआ है। यह कोई इंडियन सिविल सर्विस नहीं है कि हजारों रुपयोंका वेतन दिया जाये। इंडियन सिविल सर्विस तो लोगोंके करकी बदौलत चल रही है। वह तो लोगोंपर राज्य करनेके लिए है और हमारा मण्डल है लोगों की सेवाके लिए।

[३] आप मुसलमानोंके प्रति पक्षपातकी भावना क्यों रखते हैं? कितने ही मुसलमान नेता आपके ऊपर व्यक्तिगत आक्षेप करते हैं। आप उसका भी जवाब नहीं देते; यह क्यों?

दूसरेके धर्मका शुद्ध पक्ष लेकर मैं अपने धर्मकी रक्षा ही करता हूँ। मैं हिन्दू धर्मका नाश नहीं चाहता। मैं उसका नाश कर ही नहीं सकता, क्योंकि मैं हिन्दू-महासागरकी एक बूँद-मात्र हूँ। मुसलमान मुझे काफिर कहें तो इससे क्या होता है? उसका जवाब क्यों देना चाहिए? [दक्षिण आफ्रिकामें] मेरा एक भानजा मेरे ही साथ रहता