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८६. पत्र: जमनालाल बजाजको

बुधवार [१६ फरवरी, १९२७][१]

चि॰ जमनालाल,

तुम्हारा कार्ड मिला, मैं बम्बई चार तारीखको किसी समय या पाँचकी सुबह पहुँचूँगा। दास्ताने चाहते हैं कि मैं चारको पूनामें रहूँ और जयसुखलाल मेहताकी इच्छा है कि मैं कुछ घंटे सान्ताक्रूजमें ठहरूँ। यदि पाँच तारीखको सुबह वहाँ ठहरनेसे उन्हें संतोष हो जाये तो चारकी शाम पूनामें बिताकर उसी दिन रातकी गाड़ीसे बम्बई रवाना होऊँगा। और वहाँसे अकोला जाऊँगा।

चि॰ गोमती वहाँ आ गई है, इसलिए अब उसके और किशोरलालके वापस अकोला जानेका सवाल नहीं रह जाता। अगर नाथजी वहाँ हों तो पूछ लेना कि वे विवाह-विधि सम्पन्न करेंगे या नहीं। विवाह-विधि उनके हाथसे हो और उन्हें उसमें कोई दिक्कत न हो तो मुझे यह अच्छा लगेगा।

तुम जानकीबहनका ऑपरेशन होनेके कारण अथवा किसी और कारणसे न आ सको तो मेरा खयाल है कि कोई हर्ज नहीं।

यहाँ आज रातको ही संगमनेर जाना है।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (जी॰ एन॰ २८८४) की फोटो-नकलसे।

८७. भाषण: नासिकमें

१६ फरवरी, १९२७

कुछ युवकोंने मेरे यहाँ आते ही मुझे कुछ प्रश्न दे दिये हैं। उन प्रश्नोंका जवाब ही आजका मेरा भाषण होगा।

[१] हिन्दुस्तानकी वर्तमान परिस्थितिमें क्या एक हिन्दूके नाते आपको ऐसा नहीं लगता कि आपको श्रद्धानन्द स्मारक कोषपर और अधिक जोर देना चाहिए ? अगर आपको ऐसा लगता हो तो फिर इस कोषको इकट्ठा करनेमें आप हाथ क्यों नहीं बँटाते?

मैं तो एक अपूर्ण मनुष्य हूँ। सम्पूर्ण सर्वशक्तिमान तो एक ईश्वर है। मैं अर्थशास्त्र जानता हूँ। मेरे पास जो समय और जो शक्ति है, वह सब मैंने देशको

  1. मणिलाल गांधीके विवाह तथा गांधीजीके संगमनेर जानेके कार्यक्रमके उल्लेखसे।
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