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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

  तुम्हें जो भी अनुभव हों और उनमेंसे जो जानने लायक हों उन्हें गुजरातीमें लिखकर भेजते रहो ताकि इन अनुभवोंको 'नवजीवन' में प्रकाशित किया जा सके तथा उसके आवश्यक अंशोंको 'यंग इंडिया' में भी लिया जा सके।

शेष बातोंका तो तुम्हें वहाँ पता चलता ही रहता है इसलिए उनके सम्बन्धमें कुछ नहीं लिख रहा हूँ।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (सी॰ डब्ल्यू॰ ७७१२) से।

सौजन्य: नारणदास गांधी

८५. पत्र: मीराबहनको

नासिक
१६ फरवरी, १९२७

चि॰ मीरा,

पहले मैंने सोचा था कि खादी प्रतिष्ठानके लोगोंसे कहूँ कि जो सफरी चरखा तुम्हें भेजा जायेगा उसकी कीमत आश्रमके हिसाबमें डाल दी जाये। परन्तु मैंने अपने निर्णयपर फिरसे विचार किया और मैंने देखा कि वी॰ पी॰ से चरखा मँगा लेना ज्यादा सस्ता रहेगा । इसलिए यदि तुम्हें कलकत्तासे कोई वी॰ पी॰ पार्सल मिले तो पैसे वहीं दे देना।

मार्चकी ६ और ७ तारीखको मैं मणिलालके विवाहके लिये अकोलामें ठहरूगा। ८ से १४ मार्च तक आश्रममें और १५ से १७ तक बारडोलीमें रहूँगा। १७ की शामको मैं सूरतसे गुरुकुलके लिए गाड़ीसे रवाना हो जाऊँगा। सस्नेह,

तुम्हारा,
बापू

[पुनश्च:]

कोई पत्र न लिखनेकी अपेक्षा बोलकर लिखाया पत्र भेजना बेहतर है।

श्रीमती मीराबहन
गुरुकुल काँगड़ी

अंग्रेजी (सी॰ डब्ल्यू॰ ५२०५) से।

सौजन्य: मीराबहन