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पत्र: नारणदास गांधीको

  गंगादेवी बार-बार बीमार क्यों पड़ जाया करती है? यदि वे जलवायु परिवर्तनके लिए कहीं जाना चाहें तो वैसा प्रबन्ध कर देंगे। तोताराम और गंगादेवी दोनोंसे पूछना। क्या वे खाने-पीनेमें परहेज बरतती हैं?

मैं आनेपर संस्कृतकी और धुनने-कातने इत्यादिकी परीक्षा लूँगा। तुम्हें अपने गुजराती अक्षर अभी और अच्छे करने चाहिए। गुजराती व्याकरणका और भी अध्ययन करना।

आजकलमें संयुक्त भोजनालयको सर्वांगपूर्ण बनानेकी बात सोचता रहता हूँ। अब प्रयोग पूरा होना ही चाहिए। इसमें भरसक मदद देना।

बापूके आशीर्वाद

[गुजरातीसे]
बापुना पत्रो-४: मणिबहेन पटेलने

८४. पत्र: नारणदास गांधीको

बुधवार [१६ फरवरी, १९२७][१]

चि॰ नारणदास,

तुम्हारे सभी पत्र मिल गये हैं। मैंने महादेवसे उनका उत्तर लिख देने और जरूरी कार्रवाई करनेको कह दिया है। कुछ हदतक तो कार्रवाई हो भी चुकी है।

कातनेमें ढिलाईके बारेमें मैं अभीतक नहीं लिख पाया हूँ। समय मिलने पर लिखूँगा। मैं यह पत्र चलती हुई गाड़ीमें लिख रहा हूँ। कार्यक्रम ही ऐसा रहा कि कुछ करनेका समय नहीं मिल पाया। किन्तु अब मैंने कह दिया है कि कार्यक्रम ऐसा बनाया जाये जिससे कुछ अधिक समय मिल सके।

दोनों भण्डारोंको एक कर देने तथा उन्हें जेराजाणीको सौंप देनेसे जो नुकसान होगा उसे यदि चरखा भण्डार पूरा नहीं करेगा तो और कौन करेगा? मैं यह बात पूरी तरहसे समझ भी नहीं पा रहा हूँ, क्योंकि बहुतसे तथ्य मेरे ध्यानसे उतर गये हैं। इसका अन्तिम निर्णय तो मैं २५ या २६ को बेलगाँवमें होनेवाली बैठकमें करूँगा। क्या तुम्हें उस बैठकमें आना है?

दक्षिण आफ्रिका दिवसपर जो सूत प्राप्त हुआ है उसे चरखा संघमें जमा कर लेना।

तुम सारे सूतके कसकी जाँच करते हो, यह बात मुझे बहुत अच्छी लगती है। इस कार्यमें जो समय जाता है वह हमारे लिए फलप्रद सिद्ध हो सकता है, क्योंकि उससे तो हमें बहुत-कुछ सीखनेको मिलता है।

  1. पत्रके 'चलती हुई गाड़ीमें' लिखे जानेके उल्लेखसे लगता है कि पिछला पत्र जिस दिन लिखा गया उसी दिन यह भी लिखा गया होगा। बेलगाँवके उल्लेखसे भी यही तिथि निश्चित होती है।