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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

  अब तुम मार्च मासमें दक्षिणी आफ्रिका बिना किसी कठिनाईके जा सकते हो और उसके लिए तुम्हें जो भी तैयारी करनी हो सो कर सकते हो।

तुम वहाँसे ४ तारीखको रवाना होना और ५ तारीखको मुझे बम्बईमें मिलना।

रामदास और देवदास आना चाहते हों तो मैं उन्हें आनेके लिए लिख रहा हूँ।

बापूके आशीर्वाद

[पुनश्च:]

मैंने तुम्हारा पत्र सुशीलाको भेज दिया है। हरिलालको कुछ न लिखना। गुजराती (सी॰ डब्ल्यू॰ ११३०) से।

सौजन्य: सुशीलाबहन गांधी

८२. पत्र: रामेश्वरदास पोद्दारको

[१५ फरवरी १९२७ के पश्चात्][१]

भाईश्री ५ रामेश्वरजी,

आपके दोनों पत्र मीले हैं। जो हार आपने लीया वह खद्दर कार्यके लीये दीया गया था। इसलीये उसका दाम उसीमें हि जा सकता है। गोरक्षाके लीये भी हम तो जो योग्य है वही करें। मुझे अब गोरक्षाके लीये काफी पैसेकी आवश्यकता है क्योंकि अब चर्मालयका काम शुरू हो गया है परन्तु हमारे धीरज रखना होगा।

बापूके आशीर्वाद

मूल (जी॰ एन॰ २०६) की फोटो-नकलसे।

८३. पत्र: मणिबहन पटेलको

नासिक जाते हुए
बुधवार, [१६][२] फरवरी, १९२७

चि॰ मणि,

तुम्हारा पत्र मिला। ऐसा दीखता है कि मैं वहाँ ८ तारीखसे पहले नहीं पहुँचूँगा। अभीतक कराचीसे कोई खबर नहीं आई है।

  1. गांधीजी खादी कार्यके लिए महाराष्ट्रका दौरा करते हुए १३ से १५ तारीखतक धूलियामें थे। रामेश्वरदास पोद्दार धूलियाके निवासी थे और सम्भवत: गांधीजीने पत्रमें उल्लखित हारको धूलियामें ही नीलाम किया था।
  2. साधन-सूत्र में १८ तारीख है, किन्तु बुधवार १६ फरवरीको ही था।