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पत्र: मणिलाल गांधीको

 

[पुनश्च:]

मेरे दौरेकी तारीखें ये हैं:[१]

गुजराती (सी॰ डब्ल्यू॰ ११२०) से।

सौजन्य: सुशीलाबहन गांधी

८१. पत्र: मणिलाल गांधीको

[१४ फरवरी, १९२७][२]

चि॰ मणिलाल,

तुम्हारा पत्र मिला। विवाह अकोलामें होगा। उसके लिए ६ मार्च, रविवारका दिन तय हुआ है। मुझे बम्बईसे अकोला सीधा जाना पड़ेगा। मैं बम्बई ४ तारीखको ही पहुँच सकूँगा। ७ तारीखको सोमवार है, इसलिए वह दिन भी अकोलामें ही बीतेगा; वहाँसे हम ७ तारीखकी रातको रवाना होंगे और ८ की शामको अथवा ९ की सुबह आश्रममें पहुँचेंगे।

मैंने नानाभाईको लिख दिया है कि वे कोई आडम्बर न करें और कोई छोटा-सा भी गहना न बनवायें। मैं कुछ भी करनेवाला नहीं हूँ। तुम मेरी अनुमतिसे दक्षिण आफ्रिकामें विदेशी कपड़े पहनते हो; लेकिन सुशीलाको वह सब करनेकी कोई जरूरत नहीं। सुशीला अपनी खादीकी साड़ीमें सीताकी तरह सुशोभित होगी। यदि तुम इसमें कोई फेरबदल करना चाहो तो मुझे बताना। तुम दोनों विवाह के बाद स्वतन्त्र होगे। तब तुम अपनी इच्छाके अनुसार बरतना। लेकिन मैं यह जरूर चाहता हूँ कि तुम सुशीलाको कोई भी गहना न पहनाओ और वह खादीकी साड़ीके अलावा किसी दूसरे कपड़ेका व्यवहार न करे।

मैं जैसे-जैसे विचार करता हूँ मुझे वैसे-वैसे लगता है कि तुम्हारे पास तो एक रत्न आ रहा है। तुम उसे सँभाल कर रख सकोगे या नहीं, यही प्रश्न मेरे मनमें है। तुम अपने विकारोंको रोकना। उसे पढ़ने-लिखने देना। यह बालिका तुम्हारे अनेक कामोंमें मदद कर सकेगी। वह कम्पोज करना भी सीख सकती है। वह मेहनत करके अपनी गुजराती सुधार सकती है। लेकिन तुम उसे गुड़िया बनाओगे या सहचरी, यह तो तुमपर ही निर्भर है। अन्ततः तो वह भी बच्ची ही है। उसने दुनिया नहीं देखी है। जितने संयमका पालन तुम आज करते हो, यदि भविष्यमें उससे अधिक करने लगो तो उससे तुम दोनोंका बहुत हित होगा; यह मैं स्पष्ट देख सकता हूँ।

भगवान तुम्हें शक्ति और सद्बुद्धि दोनों ही दे।

  1. यहाँ नहीं दी जा रही है। इनके लिए देखिए "पत्र: मीराबहनको",१३-२-१९२७
  2. देखिए पिछला शीर्षक।