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८०. पत्र: नानाभाई इ॰ मशरूवालाको

मौनवार [१४ फरवरी, १९२७][१]

भाईश्री ५ नानाभाई,

आपका तार मिला। ६ तारीख आपको अनुकूल है, इससे मुझे प्रसन्नता हुई है। आप विवाह-विधिके लिए वर्षासे गोपालरावको अथवा वहाँसे सहस्रबुद्धेको आनेके लिए तैयार कर लेंगे अथवा हम आश्रमसे पंडितजीको बुलाएँ; आपको कोई खास आदमी पसन्द हो तो उसे बुला लें। मेरे लिये सब बराबर है। यदि नाथ खुद ही विधि सम्पन्न करवायें तो उनसे अधिक अनुकूल मुझे और कोई नहीं लगता। यदि पण्डितजीको बुलाना हो तो मुझे तार द्वारा सूचित करना।

सिर्फ धार्मिक विधि ही करनी है। हम उसके सिवा और कुछ न करेंगे। आप मण्डपकी रचना आदिमें कोई खर्च कदापि न करें। मिठाई न बनवायें। इस नये सम्बन्धसे न तो आप मेरे समधी बनेंगे और न सुशीला मेरी पुत्रवधू। वह मेरी पुत्री ही रहेगी और आप सब मेरे भाई-बन्द ही रहेंगे।

आप सुशीलाको कन्यादानमें रत्ती भर भी सोना न दें। उसे संस्कारके समय तो कोई आभूषण पहनने ही नहीं चाहिए। यदि बादमें उसका जी गहने पहननेको करे तो लाचारी समझूँगा, क्योंकि वह उतनी ही स्वतन्त्र है और रहेगी जितने स्वतन्त्र आप है या मैं हूँ।

मैं खुद तो अपनी बनाई सूतकी मालाके अलावा और कुछ नहीं लानेवाला हूँ; हाँ, तकली, 'गीताजी' और यदि उसकी प्रति उपलब्ध हुई तो 'भजनावली' अवश्य दूँगा।

मणिलाल दक्षिण आफ्रिकामें विलायती कपड़े पहनता है। इसके लिए उसने मेरी अनुमति ले ली थी; लेकिन सुशीलाको उसकी कोई जरूरत नहीं होगी। वह तो अपनी खादीकी साड़ीमें ही सती सीताकी तरह सुशोभित होगी।

आप बहुत अधिक लोगोंको इकट्ठा न करना। लेकिन जिन्हें बुलाना उचित हो उन्हें बुलानेमें संकोच भी न करना। मैं बम्बईसे मणिलालको लेकर नागपुर मेलसे ६ तारीखको सवेरे अकोला पहुँचूँगा। ७ को सोमवार है; इसलिए उस दिन तो वहाँ रहूँगा ही; किन्तु ७ की रातको कोई सुविधाजनक गाड़ी हुई तो उससे सीधा अहमदाबाद आ जाऊँगा। रामदास और देवदास मेरे साथ आयेंगे अथवा सीधे ही वहाँ पहुँचेंगे। अन्य कोई लोग आना चाहेंगे तो मैं उन्हें रोकूँगा नहीं।

बापूके आशीर्वाद

  1. मणिलालके विवाह तथा गांधीजीकी यात्रा कार्यक्रमके उल्लेखसे।