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७९. पत्र: आश्रमकी बहनोंको

धूलिया
सोमवार, माघ सुदी १३ [१४ फरवरी, १९२७][१]

बहनो,

चि॰ मणिबहन द्वारा लिखित तुम्हारा पत्र मिल गया।

जो बहनें वहाँ आना चाहती हैं, उनके बारेमें तुमने जो लिखा सो ठीक है। मैं फिलहाल यह आशा नहीं कर सकता कि तुम उन्हें अपने साथ रखो। मैं तो इतना ही चाहता हूँ कि तुम उनके साथ घुलो-मिलो, उनमेंसे कोई बीमार हो जाये तो उसकी सार-सँभाल करो, उनसे दूर ही दूर न रहो, और कभी-कभी उन्हें अपने पास बुला लिया करो।

चि॰ ताराकी बड़ी बहन चि॰ सुशीलाकी सगाई चि॰ मणिलालके साथ कर दी है, तुम्हें यह मालूम हो गया होगा। शादी ६ मार्चको अकोलामें होगी, इसलिए मैं तो आश्रममें ८ तारीखकी शामको या ९ की सुबह पहुँचूँगा। १४ तारीखको सोमवार है। वहाँ तबतक रहनेके बाद दौरा करने निकल पड़ूँगा। इस लिए मैं आश्रममें थोड़े ही दिन रह पाऊँगा । इस प्रकार अनिवार्य परिस्थितियोंमें मैं विवाहके काममें पड़ता जरूर हूँ, फिर भी जैसे-जैसे उसमें पड़ रहा हूँ वैसे-वैसे, स्त्री-पुरुष दोनोंके लिए ब्रह्मचर्यकी आवश्यकता अधिकाधिक देखता जा रहा हूँ। चि॰ मणिलाल केवल इन्द्रियनिग्रहकी खातिर ३२ वर्षतक कुंवारा रहा। उसने अब शादी करनेकी इच्छा प्रकट की, इसलिए मैंने उचित सम्बन्ध खोजने का प्रयत्न किया। चूँकि यह विवाह सम्बन्ध एक भक्त कुटुम्बके साथ होने जा रहा है, इसलिए इस सम्बन्धसे भले की ही आशा किये बैठा हूँ।

विवाहकी बात करनेमें हम संकोच न करें। मगर विवाहित या कुंवारे इस बातके उठने पर विकारवश भी न होवें। जो अपने विकारोंको न रोक सकें, वे जरूर शादी कर लें। और जो अपने विकारोंको रोक सकें, वे रोकें और इसी जन्ममें मुक्ति प्राप्त करने की कोशिश करें।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (जी॰ एन॰ ३६३९) की फोटो-नकलसे।

  1. मणिलालके विवाहके उल्लेखसे।