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पत्र: हेमप्रभादेवी दासगुप्तको

  अभी बहुत जल्दी ही होना है। जब मणिलाल दक्षिण आफ्रिका जायेगा, तब वह भी उसके साथ चली जायेगी। वह एक धर्मनिष्ठ घरानेकी लड़की है।

सस्नेह,

बापू

[पुनश्च:]

कार्यक्रमकी तारीखें[१]

यदि मैं तुम्हें दूसरा कार्यक्रम न भेजूँ तो ३ तारीखतक रत्नागिरिके पतेसे पत्र लिखना।

४ तारीख बम्बई, मणिभवन, लेबर्नम रोड, गामदेवी

अंग्रेजी (सी॰ डब्ल्यू॰ ५२०४) से।

सौजन्य: मीराबहन

७६. पत्र: हेमप्रभादेवी दासगुप्तको

धूलिया
सोमवार [१४ फरवरी, १९२७][२]

प्रिय भगिनि,

तुमारी परीक्षा भगवान ठीक ले रहा है। हरगीझ हारना नहिं। सुख दु:ख, जन्म मृत्यु, जरा व्याधि हमारे साथ हैं हि। मेरेसे तुमारा रूदन सोदपुरमें देखा नहि जाता था। हमारे प्रिय जनको ईश्वर हमारे साथ रखे तो अच्छा है। परंतु ले जाय तो भी अच्छा है। अपना है और अपनी वस्तु ले जाय उसमें हमें क्या? वह तो सबको ले जायगा। सबसे बड़ा नट होनेके कारण, उसे हम नटखट कहते हैं। अपने दीलमें चाहे ऐसा हमको नचाता है। हम नाचे। जगतके नचानेसे नाचते हैं इससे तो उसके नचाये नाचे वही अच्छा है ना?

ईश्वर तुम सबको शांति दे।

बापूके आशीर्वाद

मूल (जी॰ एन॰ १६६३) की फोटो-नकलसे।

  1. यहां नहीं दी जा रही हैं। इनके लिए देखिए "पत्र: मीराबहनको", १३-२-१९२७।
  2. हेमप्रभादेवी दासगुप्तको लिखे १९-२-१९२७ के पत्रके अन्तर्गत उनके पुत्र अनिलको मृत्युके उल्लेखसे।