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७५. पत्र : मीराबहनको दुबारा नहीं पढ़ा चि० मीरा, कल मैंने एक संक्षिप्त पत्र लिखा था । धूलिया १४ फरवरी १९२७ तुम मुझे अपना हिसाब भेजनेकी चिन्ता न करो। तुम्हें खर्चकी पाई-पाईका हिसाब तो रखना ही चाहिए और वह भी कागजके टुकड़ों पर नहीं, बल्कि एक बाकायदा बनाई हुई हिसाबकी बही में। यह इतना सरल काम है कि उसके उतने सरल होनेका विश्वास नहीं हो पाता। हिसाबमें जमा और खर्चकी रकमें लिखी जाती हैं। नकद रुपया जितना मिलता है, वह किसीके नाम लिखा जाता है और जितना दिया जाता है वह जमा किया जाता है। इसलिए आई हुई रकमें नामेकी की तरफ और खर्चकी जमाकी तरफ लिखी जाती हैं। इस तरह : तारीख नामे तारीख जमा आश्रमसे प्राप्त १५०) १२-८ तांगा-भाड़ा १।। ) डाकखर्च ३।। ) बाकी १४५) १५०) १५०) अंग्रेजी ढंगसे सभी रोकड़ वहियाँ इसी तरह रखी जाती हैं। तुम्हारी बही, रोकड़ बही ही है। खाता बही में रोकड़ वही और रोजनामचाके अलग-अलग हिसाबों- की सूची होती है। जहाँ नकद लेन-देन नहीं होता, वहाँ सब कुछ रोजनामचेमें लिखा जाता है। तदनुसार उधार बिक्री हो या खरीद हो, वह रोजनामचेमें दर्ज होगी। व्यवहारमें सारा बहीखाता यही है । यह जानकर मुझे आश्चर्य हुआ कि वहाँ तुम्हारे पास चरखा नहीं है। मुझे तुम्हें अपने जैसा सफरी चरखा देना पड़ेगा। मैं खादी प्रतिष्ठानसे कहकर तुम्हारे पास एक चरखा भिजवा रहा हूँ। अगर तुम इसे अपने-आप न चला सकोगी, तो मैं जब वहाँ आऊँगा तब तुम्हें चलाना अवश्य सिखा दूंगा । धूलिया बड़ी आरामकी जगह है। हम एक कार्यकर्त्ताके घरपर ठहराये गये हैं, जिसने चम्पारनमें मेरे साथ काम किया था । यहाँ एक सज्जन रहते हैं। अगर एन्ड्रयूजसे भी सौम्य कोई चेहरा हो सकता है तो वह इन सज्जनका है। अकोला भी ऐसी ही जगह है। अकोलासे मुझे मणिलालके लिए बहू मिली है। लड़की किशोरलालकी भतीजी है, और उसकी उम्र १९ वर्ष है। उनका विवाह Gandhi Heritage Portal