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७३. भाषण: धूलियामें

१३ फरवरी, १९२७

धूलियामें कार्यक्रम बोझिल था लेकिन हर चीज इतनी व्यवस्थित ढंगसे और शान्तिके साथ हुई कि गांधीजी एक दिनमें छः सभाओंमें बोल सके और भाषण देते समय वे बराबर अपने चरखेपर कातते रहे। उन्होंने कहा:

यदि मैं आपके सामने भाषण देते समय सूत कातता रहूँ तो मुझे बेअदब न मानें। मैं इसलिए सूत कात रहा हूँ कि यहाँ इतनी अद्भुत शान्ति है और इसलिए भी कि मैं समझता हूँ कि मैं जिस चीजमें सबसे ज्यादा विश्वास रखता हूँ, उसका आपको वस्तुपाठ देकर मैं सबसे अच्छे ढंगसे आपके स्नेहका प्रतिदान दे सकता हूँ। कुछ साल पहले जब डा॰ ठाकुर[१] हमारे आश्रममें आये थे, सुबहकी प्रार्थना समाप्त हो जानेके बाद मैंने उनसे अपने आश्रमके बालकोंसे दो शब्द कहने को कहा। उन्होंने कुछ नहीं कहा और न कहनेके लिए क्षमा माँगनेके रूपमें भी कुछ नहीं कहा, लेकिन अपने मधुरतम ढंगसे अपना एक मधुरतम गीत गाकर सुनाया और चुप हो गये। मेरे विचारसे उनका ऐसा करना उनकी शिष्टताकी पराकाष्ठा थी। वह हमें सबसे सुन्दर जो चीज दे सकते थे, उन्होंने उसीसे हमें सन्तुष्ट किया। मैं आप लोगोंके सामने चरखा चलाकर उनका अनुकरण मात्र कर रहा हूँ। चरखा तो मेरा एकमात्र गीत है, जिसके जरिये मैं समझता हूँ कि मैं भारतकी सबसे अधिक सेवा कर सकता हूँ।

'हर जगहपर स्थानीय संस्थाओंकी ओरसे अभिनन्दनपत्र दिये गये हैं। अब मैं धूलियामें स्थानीय बोर्डका अभिनन्दनपत्र मिलनेपर दिये गये गांधीजीके उत्तरको संक्षेपमें दे दूँ।

पूरे देशमें सब जगह अपने भ्रमणके दौरान मैंने अबतक एक भी ऐसी स्थानीय संस्था नहीं देखी, जो स्वतन्त्र रूपसे अपनी ही प्रेरणासे काम करती हो और जिसका मैं एक आदर्श संस्थाके रूपमें उल्लेख कर सकूँ। श्री लिओनेल कर्टिसने भारतीय गाँव और अंग्रेजोंके गाँवके बीचके गहरे अन्तरपर टिप्पणी करते हुए कहा था कि जहाँ भारतीय गाँव आपके मनमें सामान्य तौरपर गन्दगीकी छाप छोड़ता हैं और कूड़ेके ढेरपर बसी किसी बस्तीकी याद मनमें जगाता है, वहाँ अंग्रेजोंका गाँव स्वच्छता, स्वास्थ्य और सर्वत्र सौन्दर्यकी एक छाप मनपर छोड़ता है। निश्चय ही उन्हें भारतीय ग्रामीणोंकी दशाके बारेमें कुछ नहीं मालूम था, उन्हें यह नहीं मालूम था कि उसकी प्रतिदिनकी आय अंग्रेज ग्रामीणकी आयकी तुलनामें ५ प्रतिशत है। लेकिन उनकी इस उक्तिमें जो एक ठोस सत्य है, उसकी हमें अवहेलना नहीं करनी चाहिए। इस तथ्यको कहनेसे कोई लाभ नहीं। यह स्पष्ट है कि हमारा ग्रामीण व्यक्ति गाँवकी

  1. रवीन्द्रनाथ ठाकुर १९२० में आश्रम आये थे।