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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आपने श्री योगेश्वर चटर्जीके सम्बन्धमें जो टिप्पणी भेजी है, मैं उसका महत्त्व समझता हूँ। मैं 'यंग इंडिया' में इसको काममें लानेवाला हूँ।[१] कृपया शोक सन्तप्त परिवारको मेरी सादर समवेदना पहुँचा दें।

मुझे आशा है कि आप और परिवारके अन्य सदस्य स्वस्थ होंगे और सोदपुरका काम प्रगति कर रहा होगा। मैं जानता हूँ कि अब कामका सारा भार आपके कन्धों पर आ पड़ा है, परन्तु ईश्वरको धन्यवाद है कि आपमें उस भारको सहन कर सकनेकी शक्ति है।

हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी

सहपत्र: १


श्रीयुत क्षितीश बाबू


१७०, बहू बाजार स्ट्रीट, कलकत्ता

[कार्यक्रम[२]]

अंग्रेजी (जी॰ एन॰ ८९२२) की फोटो-नकलसे।

६९. पत्र: बी॰ एफ॰ मदानको

धूलिया
१३ फरवरी, १९२७

प्रिय मित्र,

आपका पत्र मिला। उसमें आपने विषयपर[३] पूर्ण प्रकाश डाला है। आप जो भी कुछ कहते हैं, उसपर मैं जरूर ध्यान देता हूँ, क्योंकि अर्थशास्त्रियोंने जिस विषयको अनावश्यक रूपमें दुरुह बना दिया है, उस विषयका आप जैसा सीधा-सादा एवं लोकप्रिय स्पष्टीकरण करते हैं, उसे मैं पसन्द करता हूँ। मैं आपकी अनुमतिकी प्रत्याशामें आपका पत्र प्रो॰ वाडियाको भेजनेकी धृष्टता कर रहा हूँ, जिससे वह आपका दृष्टिकोण समझ सकें और उसका मूल्यांकन कर सकें। मैं उस खाईको पाटना चाहूँगा, जो ऐसा प्रतीत होता है कि बिना किसी कारणके अर्थशास्त्रियोंको साधारण लोगोंसे अलग किये हुए है। इससे साधारण व्यक्तिके लिए इस अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विषयको समझना मुश्किल हो जाता है। यदि हमारे देशके सभी अर्थशास्त्री मूलभूत सिद्धान्तोंपर सहमत हो जायें और एक संक्षिप्त तथा तर्कपूर्ण संयुक्त वक्तव्य जारी कर दें, तो यह

  1. देखिए "एक बड़े कतैये", १७-२-१९२७।
  2. देखिए "पत्र: मीराबहनको", १३-२-१९२७।
  3. रुपयेकी विनिमय दर से सम्बन्धित विषय; देखिए "पत्र: पुरुषोत्तमदास ठाकुरदासको" और "पत्र: बी॰ एफ॰ मदानको", २२-२-१९२७ भी।