पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 33.pdf/११५

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
७७
भाषण: अमलनेरमें

  यह जरूर चाहता हूँ कि हरएक घरमें चरखा चले। इसके परिणामस्वरूप यदि देशमें एक भी मिल न रहे तो भले ही न रहे।

मिलवालोंको मिलका ही कपड़ा इस्तेमाल करना चाहिए, ऐसी कोई बात नहीं। मैंचेस्टरमें बनाये गये कपड़ेका उपयोग मैंचेस्टरमें नहीं होता। वहाँके लोग तो दूसरा कपड़ा पहनते हैं। हम भी अपनी मिलें इसी तरह चलायें। जिन दूसरे देशोंमें हमारे कपड़ेकी माँग हो, वहाँ कपड़ा भेजनेके लिए चलायें। ऐसी कोई बात नहीं है कि आपको अपनी मिलका कपड़ा पहनना ही चाहिए। आप उसे न पहनें तो इससे आपकी प्रतिष्ठापर तनिक भी आँच नहीं आती। डचेस ऑफ सदरलैंडने हेब्रिडीज द्वीपके लोगोंकी गरीबी देखी तो उन्होंने उन्हें चरखे और करघे दिये और वहाँ बने हुए कपड़ेका प्रचार किया। मिलवाले इस कपड़ेको तिगुने दाम देकर खरीदते हैं और पहनते हैं, यह बात मुझे दक्षिण आफ्रिकामें मालूम हुई थी। जिस समयमें यहाँ आया उस समय उन्होंने मुझे भेंट देनेके लिए हाथसे कती और बुनी खादीकी पोशाक बनवाई थी। यदि वे मुझे मिलके कपड़ेकी पोशाक देते तो ५ पौंडमें काम चल जाता। पर उनके मनमें तो ऊँची भावना थी इसलिए उन्होंने पाँचके बदले ९ पौंड खर्च कर दिये। यही भावना आपके मनमें भी आनी चाहिए।

मुझे धोखा देनेके लिए आप एक कौड़ीकी भी खादी खरीदें, यह मैं नहीं चाहता। क्योंकि खादीके प्रति मेरी निष्ठा इस बातपर निर्भर नहीं है कि उसे दूसरे लोग पहनें। यदि करोड़ों लोग भी मेरे ऊपर थूकें तो भी मुझमें अपने धर्मका पालन करनेकी शक्ति है। इसलिए यदि आप पैसा देते हैं तो इसे धर्म प्रवृत्ति समझ कर ही दें। मुझे तो गरीबोंकी सेवा करनी है। और गरीबोंकी सेवा द्वारा ईश्वरका दर्शन करना है। इसलिए इस धर्मकार्यमें झूठ नहीं होना चाहिए। मैं खादीके बिना जी सकता हूँ, पर अंधप्रेम और झूठ तो मुझे मार डालेगा।

आप सस्ती और महीन खादी चाहते हैं तो स्वयं कातें। एक प्रसिद्ध कातनेवाले योगेश्वर चटर्जी[१] २०० अंकका सूत कातकर उसे स्वयं बुनते थे। उनकी कामना थी कि वह ढाकाकी शबनम जैसी बढ़िया मलमल बनायें। किन्तु उनकी अकाल मृत्यु हो गई। यदि उनकी तरह आप भी प्रयत्न करें तो आपको सस्ती तथा महीन खादी मिल जाये। पर आप तो धर्म-कार्य बैठे-बैठे करना चाहते हैं और सस्ती खादी ढूँढ़ना चाहते हैं। इस तरह भला वह कैसे मिल सकती है? स्वराज्य चाहनेवाले लोगोंके मुँहसे यह बात शोभा नहीं देती। स्वराज्यका मन्त्र बतानेवाले तिलक महाराजने कहा था कि जेलमें मरना पड़े तो भी हमें अपना रास्ता छोड़ना नहीं है। स्वराज्यके लिए चाहे फाँसी चढ़ना पड़े, पिता-माता, पुत्र, स्त्री सबका त्याग करना पड़े, पर रणक्षेत्र छोड़ा नहीं जा सकता——यही शूरवीरका धर्म है। पिछली लड़ाईमें चैम्सफोर्डका पुत्र चल बसा। चैम्सफोर्डने अपना स्थान नहीं छोड़ा। रॉबर्ट्सका एक पुत्र मर गया, तो भी उसने एक दिन भी अपना काम नहीं छोड़ा। एलिजाबेथके जमानेमें लोग दस——

  1. देखिए "एक बड़े कतैए", १७-२-१९२७।