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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

  एक मजदूर हूँ। धर्मका पालन और उसे समझना ये दोनों अलग-अलग बातें हैं। यदि धर्मको समझना और उसका पालन, इन दोनोंका योग हो तो तुरन्त रामराज्य स्थापित हो जाये। बहुतसे भाई-बहन कहते हैं कि वे ब्रह्मचर्यके महत्त्वको समझते हैं, उसका पालन करना चाहते हैं, पर कर नहीं पाते——यही बात खादीके सम्बन्धमें है। वे खादीका महत्त्व तो समझ गये हैं किन्तु वे अपना शौक नहीं छोड़ पाते। वे कहते हैं आप हमें आशीर्वाद दीजिए कि हम उसे छोड़ सकें। मैं यह वातावरण देख रहा हूँ इसीलिए मुझे निराशा नहीं है।

परन्तु आप कहेंगे कि अमलनेरके ऊपर हमला किसलिए। मैं कहता हूँ आप लोग २,००० लोगोंको मजदूरी देते हो, पर करोड़ोंको नहीं दे सकते। इसके सिवा, आप जिन २,००० मजदूरोंको काम देते हो उन्हें भी उनकी खेतीसे हटाकर ही देते हो। वे सभी अपनी खेती काममें लगे रहें और फिर भी उनकी आमदनीमें वृद्धि हो जाये——इसका क्या उपाय है? यह प्रश्न भारतका हित चाहनेवाले प्रत्येक व्यक्तिके सामने है। खेती सम्बन्धी आयोगके सामने है। वाइसरायके सामने है। आज मेरा विरोध करनेवाले अर्थशास्त्री कोई ऐसी दूसरी चीज नहीं सुझा सकते जो चरखेका स्थान ले सके। और जो अर्थशास्त्री मुझसे सहमत हैं वे डा॰ राय[१] की तरह हमारी प्रवृत्तिमें पूर्ण योग दे रहे हैं। वे अकालके कष्टोंका निवारण चरखा लेकर कर सके हैं, मिलोंके द्वारा नहीं। इसलिए आपके गाँवमें मिल है, तो भी आपके मनमें तो यही इच्छा होनी चाहिए कि हर घरमें मिल हो जाये तो कितना अच्छा! मिलके रूपमें अनेक चरखे एक जगह इकट्ठे करनेके बजाय जितने घर हों उतनी छोटी-छोटी मिलें बना देना बेहतर है। यह कब होगा, यह प्रश्न ठीक नहीं है। सत्यका युग कब आयेगा, यह कोई नहीं पूछता। ऐसा कौन कहेगा कि यह युग पास आता दिखाई नहीं देता, इसलिए हम तो अब सत्यको छोड़ देंगे।

मिल मालिकोंको समझना चाहिए कि हमें अपना व्यापार छोड़ना पड़े, तो भी खादीका समर्थन करना है। मुट्ठी-भर मजदूरोंको छोड़ना है पर करोड़ोंको सहायता देनेवाली खादीका समर्थन करना है। मैं अनेक बार कह चुका हूँ कि मैं मिल उद्योगका नाश नहीं चाहता। जब मिलके मालपर लगाये जानेवाले उत्पादन-करके सम्बन्धमें मुझसे पूछा गया था तब मैंने उसका विरोध ही किया था।

पर देशकी हानि होनेपर इस उद्योगकी उन्नति हो, ऐसा मैं नहीं चाहता। यदि देशकी उन्नतिके लिए इस उद्योगको नष्ट करना जरूरी हो तो मैं कहूँगा कि हम इसे अवश्य नष्ट हो जाने दें। मारवाड़ी और गुजराती मिल-मालिक मेरी इस वृत्तिको जानते हैं; वे कहते हैं कि आप अपनी प्रवृत्ति चलाइए, इससे हमारा व्यापार ठप हो जाये तब भी कोई परवाह नहीं। इनमें से कुछ शायद झूठमूठ ही ऐसा कहते होंगे, पर अधिकांश सच्चे हृदयसे ऐसा कहते हैं, इसमें मुझे कोई सन्देह नहीं।

इसलिए मैं ऐसा भी कह सकता हूँ कि यहाँ मिलें चलती हैं इसी कारण मैं यहाँ खादी लेकर आया हूँ। मैं यह नहीं चाहता कि मिलें नष्ट हो जायें, पर मैं

  1. प्र॰ च॰ राय।