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६६. भाषण: अमलनेरमें

१२ फरवरी, १९२७

प्रश्न किया गया है कि अमलनेर जैसे गाँवमें खादी प्रचारसे क्या होगा? यहाँ तो अच्छी-खासी मिलें चलती हैं, फिर खादी कौन पहनेगा? यह प्रश्न पूछा जा सकता है; हालाँकि पाँच वर्षतक इस प्रवृत्तिको चलानेके बाद इस सवालकी गुंजाइश नहीं रहती। इसका जवाब तो मैं अनेक बार दे चुका हूँ। परन्तु शास्त्रकारोंका कथन है कि जबतक सत्यको सब लोग न समझने लगें तबतक सत्यको बार-बार कहनेमें, करोड़ों बार समझानेमें भी संकोच न करना चाहिए। यदि किसी एक मनुष्यके कहनेसे सभी सत्यको समझ लेते तब तो सभी आस्तिक होते; कोई भी नास्तिक न होता। कारण, ईश्वर एक है यह तो हम करोड़ों बार सुन चुके हैं। परन्तु जब तक कोई सत्य केवल हमारी बुद्धिमें ही उतरा हो, बुद्धिने तो उसे स्वीकार कर लिया हो किन्तु हृदयमें उसका प्रवेश न हुआ हो और हृदयने भी मान लिया हो किन्तु दुनियाने उसे स्वीकार न किया हो तबतक तो हमें उसका प्रचार करते ही रहना होगा।

यहाँ मिलें चलती हैं तब फिर यहाँ खादी प्रचारसे क्या लाभ होगा? इसके जवाबमें तो मैं इतना ही कहूँगा कि अमुक स्थानपर कोई एक वस्तु बहुत प्रचलित हो लेकिन जनतापर उसका बुरा असर होता हो तो उस अवस्थामें दूसरी वस्तुका प्रचार करना हमारा परम धर्म है। हमने भारत क्यों गवाँ दिया? हमने उसे व्यापारके कारण ही गँवाया। आज व्यापार द्वारा ही अमेरिका और इंग्लैंड दूसरे देशोंके व्यापार पर कब्जा किये बैठे हैं। हम विदेशसे [प्रतिवर्ष] ६० करोड़का कपड़ा लेते हैं। उसे लेना बन्द कर दें तो उनका यह कब्जा भी समाप्त हो जायेगा। हम उनके साथ व्यापार करना बन्द न करें; दूसरी अनेक वस्तुओंका व्यापार जारी रखें। पर वे हमारे देशका जो दुरुपयोग कर रहे हैं उस दुरुपयोगकी बुराईको तो दूर करना ही है। जिस प्रवृत्तिसे किसी भी व्यक्तिको सचमुच कोई हानि न हो वह प्रवृत्ति धार्मिक प्रवृत्ति है और खादी एक ऐसी ही प्रवृत्ति है।

मुझे दी गई थैलीमें मजदूरोंने जो पैसे[१] दिये हैं वे मेरे लिये सोनेके हैं। पर यह कोई नई बात नहीं है। भारतमें मुझे ऐसा धन अनेक बार मिला है। मिल-मालिकोंने भी मुझे पैसा दिया है। सो मेरी प्रवृत्तिको समझकर ही दिया है। जो नहीं देते वे मेरे प्रति स्नेह तो रखते हैं पर मेरी प्रवृत्तिको पसन्द नहीं करते, अतः उसके लिए धन नहीं देते। मजदूर मुझे धनकी मदद देते हैं उसका कारण यही है कि मैं भी

  1. यंग इंडिया, २४-२-१९२७ में प्रकाशित विवरणके अनुसार मजदूरोंने गांधीजीको ३३० रुपयेकी थैली भेंट की थी।