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६२. पत्र: जमनालाल बजाजको

गुरुवार [१० फरवरी, १९२७][१]

चि॰ जमनालाल,

तुलसी मेहरजी कहते हैं कि उनके बारेमें मैं तुम्हें जो लिखूँगा, तुम्हारा इरादा उसीके अनुसार कार्य करनेका है। मैं स्टेशन जा रहा हूँ, इसलिए इतना ही लिखता हूँ।

मेरा खयाल तो यह है कि जितना घाटा आये, वह चरखा संघसे अथवा आश्रमसे दिया जाये। यदि तुम्हें यह ठीक लगे कि चरखा संघसे देकर कौंसिलकी सम्मति बादमें ली जाये तो वैसा कर लेना। नहीं तो आश्रमके नाम लिखाकर रुई दिला देना।

उनके पास तीन सौ रुपये हैं। वे बोरोंमें बन्दकी हुई जितनी रुई रेलके एक डिब्बेमें आ जाये उतनी रुई चाहते हैं। अगर इसमें ८०० रुपयेसे अधिक खर्च न बैठे, तो उतनी रुई दिला देना। उनके ३०० रुपये [इन आठ सौ से] अलग माने जायें।

अगर कम रुई भेजनेसे रेल-किराया कम हो तो कम भेजना उचित समझता हूँ। तुलसी मेहरजी पचास बंगाली मन चाहते हैं, क्योंकि उनका खयाल है कि ५० मन या २५ मनका रक्सौलतक किराया एक ही पड़ेगा। अगर यही बात हो तो ५० मन दे देना ही उचित मालूम होता है। अगर इसमें कोई बात लिखनी रह गई हो तो जैसा ठीक लगे, वैसा कर लेना। तुम्हें जो ठीक जँचे वही मेरा भी अभिप्राय मान लेना।

बम्बई जाओ तो मेरा जो सामान, पुस्तकें, कपड़े आदि हैं, लेते जाना। वहाँ जाकर डाक्टरकी सलाह हो तो ऑपरेशन तुरन्त करा डालना।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (जी॰ एन॰ २८८३) की फोटो-नकलसे।

  1. तुलसी मेहर ७ फरवरी, १९२७ को गांधीजीके साथ थे; देखिए "पत्र: मीराबहनको", ७-२-१९२७।