पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 33.pdf/१०९

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

६१. पत्र: मणिबहन पटेलको

गुरुवार, १० फरवरी, १९२७

चि॰ मणि,

तुम्हारे दो पत्र मिले। हिन्दी पढ़ना शुरू कर दिया, यह अच्छा किया। जो भी करो उसके साथ स्वास्थ्य की रक्षा करती रहो। तब मैं निश्चिन्त रह सकूँगा।

अक्षरोंको कदापि मत बिगड़ने दो। भले ही लिखनेमें देर लगे। थोड़े समयमें सुधर जायेंगे और गति बढ़ जायेगी।

पूनियाँ निस्सन्देह बहुत ही अच्छी हैं। मैं चाहता हूँ कि रुईसे सम्बन्धित प्रत्येक क्रियामें तुम्हें पहली श्रेणी मिले। तुम्हारे समयका अच्छेसे-अच्छा उपयोग कन्या-पाठशालाओंमें कताई सिखलानेमें होगा। और अन्तमें ईश्वर तुम्हारी तबीयत ठीक रखे तो तुम्हें गरीब बहनोंका कल्याण करना है। स्त्रियोंमें जो काम करना है उसका कोई अन्त नहीं है और पुरुष तो उसे सीमित रूपमें ही कर सकते हैं।

भोजनालयकी आलोचना मुझे पूरी-पूरी लिखना। और शंकरको[१] प्रेमपूर्वक बताना। एक-दो दिन खुद करके भी बताया जा सकता है। उसमें रोजाना पूरा भाग लेनेकी जरूरत नहीं। तुम्हें दूसरोंके साथ रहनेकी कला सीखनी चाहिए। मुझे प्रसन्नता तब होगी जब मैं महादेव और देवदासकी तरह तुम्हें भी चाहे जहाँ निर्भय हो कर रख सकूँ। मुझे तब संतोष होगा जब न तो तुम्हें किसीसे उद्वेगका अनुभव हो और न किसी दूसरेको तुमसे।

बापूके आशीर्वाद

चि॰ मणिबहन पटेल


सत्याग्रह आश्रम


साबरमती

[गुजरातीसे]

बापुना पत्रो——४: मणिबहेन पटेलने

  1. आश्रमके संयुक्त भोजनालयकी देखभाल करनेवाले एक भाई।