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पत्र : ए० सी० सी० हावेंको


सहयोग करने की अपील की थी । मेरी दलीलमें जो भी ताकत थी वह सहयोगके प्रति मेरी शुद्ध आस्थाके कारण थी। अब रौलट अधिनियम बन जाने और उसके बाद होनेवाली घटनाओंके बाद मेरी आँखें खुल गई हैं और मैं अपने भीतर वह उत्साह पैदा नहीं कर सकता जो अमृतसरवाली अपील करते समय मुझमें था। मेरा विश्वास हिल गया है। और फिर ऐसी कोई बात नहीं हुई है जिससे वह विश्वास दुबारा जम सके; हालांकि मैं फिरसे वही विश्वास अपने अन्दर महसूस करने के लिए उत्सुक हूँ। किसी व्यक्ति या किसी काम के प्रति अविश्वास-भाव रखना मुझ सुखकर नहीं लगता। लेकिन तथ्योंको देखकर भी अपनी आँखें बन्द कर लूँ, तो मैं झूठा बनूँगा | मैं मानता हूँ कि ईश्वरकी योजना में जिस प्रकार रात्रिका होना एक बुनियादी तथ्य है ठीक उसी प्रकार असहयोग भी एक बुनियादी तथ्य है । यदि असहयोग न हो तो फिर सहयोग नामकी चीज हो ही नहीं सकती।' यदि जो-कुछ अच्छा है, उस कामको करने में हम अपना सहयोग देते हैं तो हमें चाहिए कि जो-कुछ बुरा है, उस कामसे अपना सहयोग वापस ले लें । मेरा विश्वास है कि भारतका मौजूदा ब्रिटिश प्रशासन कुल मिलाकर अच्छा नहीं है, बल्कि निश्चित रूपसे बुरा है। उसकी सैन्य-नीति और राजस्व नीति, जिसमें शराब और मादक वस्तुओंका घृण्य व्यापार भी शामिल है, तथा भारतीयोंके ऊपर अंग्रेजोंके हितोंको तरजीह देनेकी नीतिके कारण इस दुःखी देश की जनताका नैतिक और भौतिक दोनों दृष्टियोंसे निरन्तर ह्रास हो रहा है । इस देशके साथ जो घोर अन्याय किया जा रहा है उसकी अंग्रेज जनताको कोई खबर ही नहीं है, और यदि हम सहयोग देना जारी रखेंगे, तो उसे यह खबर कभी होगी भी नहीं, फिर हम यह सहयोग अज्ञानवश, दम्भवश या अपनी कमजोरीके कारण ही क्यों न दें। अतः सशस्त्र विद्रोहका एकमात्र विकल्प असहयोग ही है। ऐसा कहा जाता है कि हम समझा-बुझाकर या तर्क देकर अपना उद्देश्य प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन व्यापक अनुभवोंके आधारपर बनी मेरी रायमें लोगोंको किसी चीजके लिए राजी करने के प्रयत्नमें तर्कका बहुत सीमित महत्त्व है। जिन बातोंकी जड़ें बहुत गहरी होती हैं, उन बातोंमें तर्क बुरी तरह विफल होता है। लेकिन मैंने जो स्थिति अपनाई है उसके प्रति मेरी भावनाएँ बहुत प्रबल हैं, तथापि में आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मेरे असहयोगका उद्देश्य ही सहयोग उत्पन्न करना है। आपको यह विश्वास दिलाने की जरूरत नहीं है.....।

[ ए० सी० सी० हार्वे

गवर्नमेंट इंटरमीडिएट कालेज

लुधियाना, पंजाब ]

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १२८०४) की फोटो-नकलसे ।

१. हावैंने अपने पत्रमें असहयोगको नीतिको 'केवल राजनीतिक दृष्टिसे गलत ही नहीं बल्कि अधार्मिक और ईश्वरकी योजनाके विरुद्ध' भी कहा था।

२. हावैने अपने पत्र में ऐसा भी कहा था।

३. साधन-सूत्र में पाठ अधूरा है।

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