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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

की संस्था है। आइए, हम इस संस्थाको देशबन्धुका स्मारक होने योग्य बनायें और इस प्रकार भारतमें उनकी स्मृति अमर बनायें ।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, १३-१-१९२७

२०६. भाषण : केवड़ाताल श्मशानघाट, कलकत्ता में '

२ जनवरी, १९२७
 

महात्मा गांधीने इस अवसरपर एक छोटासा भाषण दिया। उन्होंने कहा कि मैं बंगालके नहीं, सारे भारतवर्षके एक बहुत बड़े राष्ट्रभक्तके सम्मान में बननेवाले स्मारक- की आधारशिला रख रहा हूँ। इसे मैं अपने लिए परम सौभाग्य की बात मानता हूँ । मुझे इस बातका खेद है कि मैं अश्विनीबाबूके निकट सम्पर्कमें नहीं आ सका। जब में दक्षिण आफ्रिकाम था उस समय बंगाल विभाजनके जमानेमें अखबारोंके जरिये में अश्विनीबाबूके कार्योंसे परिचित हुआ था।

महात्माजीने आगे बोलते हुए कहा कि भारत लौटनेपर अपनी बंगाल यात्रा के दौरान जब मैं बारीसाल गया तब मुझे अश्विनीकुमार दत्तके दर्शनोंका सौभाग्य प्राप्त हुआ था । बारोसालों में जैसे ही स्टोमरसे नीचे उतरा, मुझे बताया गया कि अश्विनी बाबू रोगशय्यापर पड़े हैं, और इसी कारण मेरा स्वागत करने नहीं आ सके हैं। अतः मैंने अपना सबसे पहला कर्त्तव्य यह माना कि मैं सीधे पहले उनके पास ही जाऊँ और रोगशय्यापर पड़े इस महान देशभक्तके दर्शन करूँ। उस समय मिलनेपर अश्विनी बाबूकी आँखोंमें जैसा प्रेमभाव मैंने देखा, उसे मैं कभी नहीं भूल सकता ।

महात्माजोने कहा कि अश्विनोबाबूके जीवनसे हमें यह पाठ मिलता है कि मातृ- भूमिके पुजारी वही लोग हो सकते हैं जिन्होंने स्वदेशके लिए जीवनके सारे सुखोंका त्याग कर दिया हो और अपनी सारी व्यक्तिगत इच्छाओं और आकांक्षाओंका बलिदान कर दिया हो । महात्माजीने भारतके नौजवानों को सलाह दी कि वे उस भावनाको अपनायें जिस भावनाको लेकर अश्विनीकुमारने अपना जीवन बिताया। यही सबक है जो संसारके महापुरुषोंके जीवनसे हर नौजवानको सीखना चाहिए।

महात्माजोने आगे कहा कि अखबारोंमें बहुतसे लोगोंके बारेमें बहुतसी बातें पढ़नेको मिलती हैं, लेकिन जबतक कोई उन व्यक्तियोंसे साक्षात् न मिले तबतक उनके बारेमें सच्ची बातका पता नहीं चल सकता। जब में अश्विनीकुमार दत्तके निकट सम्पर्क में आया तभी मुझे अखबारों में कही गई उनसे सम्बन्धित बातों की सचाईका पूरा। भान हुआ ।


१. यह भाषण गांधीजीने अश्विनीकुमार दत्तके स्मारकका शिलान्यास करनेके अवसरपर दिया था।