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'गीता-शिक्षण'

देहीको इस देह में जिस प्रकार कौमार, यौवन और जराकी प्राप्ति होती है, उसी प्रकार उसे देहान्तर प्राप्ति[१] (मृत्यु) होती है। यहाँ 'देहान्तर प्राप्ति' शब्दका अर्थ पुनर्जन्म विवक्षित नहीं है; यहाँ मरणके भयको हटाना ही प्रस्तुत है, पुनर्जन्मके भयको नहीं।

[१२]

मंगलवार, ९ मार्च, १९२६

मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः।
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत॥
यं हि न व्यथयन्त्यते पुरुषं पुरुषर्षभ।
समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते॥ (२,१४-१५)

जबतक रस्सीको साँप माना है तभीतक भय है। इसी तरह यदि देहकी सभी स्वाभाविक अवस्थाओंका ज्ञान हो जाये तो शोक ही न रहे। भगवान् कृष्ण अर्जुनकी उत्तेजनाको शान्त करनेके लिए उसे आत्मा और देहकी स्थिति समझाना चाहते हैं। इन्द्रियोंके स्पर्श शीत, उष्ण तथा सुख और दुःख देनेवाले होते हैं; ये आने-जानेवाले हैं, अनित्य हैं; इसलिए हे अर्जुन, तु इन्हें सहन कर।

जो व्यक्ति इनसे क्षुभित नहीं होता—इनसे व्यथित नहीं होता—भ्रम में नहीं पड़ता — दुःखी नहीं होता, वही अमरपद पानेके योग्य है।


जिसे इन्द्रियाँ स्पर्श ही नहीं करतीं, उसे कोई चिन्ता हो ही नहीं सकती। इन्द्रियोंके स्पर्श ही सुख-दुःखके लिए उत्तरदायी हैं। किसीने कहा है: क्रोधित मनुष्यके स्नायु तेरह गुने और हँसते हुए व्यक्तिके स्नायु नौ गुने कठिन हो जाते हैं। इसलिए क्रोधित व्यक्तिका शक्ति-व्यय अधिक होता है। जिसकी शक्तिका अपव्यय होता है, उसे अमरपद नहीं मिलता। सुख-दुःखमें समभाव रहना अभ्यास- साध्य है। ऐसे शान्त व्यक्तिके विषयमें यदि हम यह कहें कि वह साक्षात् ईश्वर है तो भी अनुचित नहीं होगा। फीनिक्समें एक पाखण्डी स्वामी आये हुए थे। उन्होंने मुझसे कहा कि मुझे 'गीता' का जो श्लोक मालूम हो, उन्हें सुनाऊँ। मैंने उन्हें यही श्लोक सुनाया। अपनी वकालतके प्रारम्भिक दिनोंमें में एक दिन बहुत परेशान हुआ। घूमने निकला, किन्तु परेशानी बनी रही। तभी यह श्लोक याद पड़ा और कह सकता हूँ कि मैं नाच ही उठा। हमें अपनेको अर्जुनके स्थानपर मानकर श्रीकृष्णको अपना सारथी मान लेना चाहिए। इस तरह 'गीता' का स्थूल अर्थ यह हुआ कि एक बार युद्धमें कूद पड़नेके बाद जूझते ही चले जाना चाहिए [ अर्थात् ] एक बार जो काम हाथमें ले लिया उसे छोड़ना नहीं चाहिए। इस तरह जो दृष्टान्त लिया गया है वह मिथ्या नहीं हो सकता, अपूर्ण नहीं हो सकता, ऐसा सोचकर समझदार व्यक्ति को उसमें से उलटा अर्थ भी नहीं निकालना चाहिए।

  1. यह एक श्लोक हो उस दिन चलता रहा। विशेषत: 'देहान्तरप्राप्तिः शब्दकी मीमांसा। विवरण संक्षिप्त ही जान पड़ता है।