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टिप्पणियाँ

चोधराओंमें[१] आत्मशुद्धि

गुजरात महाविद्यालयके अध्यापक नारायणदास मलकानी बारडोली ताल्लुकेमें वेडछीके आस-पासके भागोंमें चोधराओंमें जो काम चल रहा है उसे देखकर लौटे हैं और उन्होंने उसके बारेमें अपनी टिप्पणी 'यंग इंडिया' में प्रकाशनार्थ भेजी है। यहाँ मैं उसका सारांश ही दूंगा, क्योंकि मूल लेखकी बहुत-सी बातें गुजरातसे बाहरके पाठकोंके लिए हैं।

सन् २१ में तो काफी बड़ी संख्या में गाँव शराबसे मुक्त हो गये थे। बादमें बहुतसे गाँवोंमें लोगोंने फिर मदिरापान आरम्भ कर दिया। अब इन भागों में स्थायी रूपसे बसे कार्यकर्त्ताओंके अथक परिश्रमके परिणामस्वरूप जो प्रवृत्ति चल रही है, वह जानने योग्य है। श्री नारायण मलकानी 'शुद्ध' मदिराकी बातपरसे 'शुद्ध' गाँवोंकी बात कर रहे हैं।

चोधरा कालीपरजोंमें ऊँचे माने जाते हैं, वे जमीन जोतते हैं लेकिन उनके शराब आदिके व्यसनके कारण दारू बेचनेवाले और साहूकार उनके मालिक बन गये हैं। ये लोग वहाँकी देशी सरकार हैं। यदि वे इस देशी सरकारके पंजेसे छूट जायें तो कहा जायेगा कि उन्हें स्वराज्य मिल गया।

वेडछो आश्रमने[२] खादी कार्यके माध्यमसे मद्यनिषेधके कार्यको मजबूत किया है। आज वहाँ ४०० चरखे चल रहे हैं, अर्थात् ८०० लोग सूत कात रहे हैं। कातने-वालों में पुरुषोंकी संख्या ज्यादा है। पहले साल २५० सेर सूत काता गया और गत वर्ष ८०० सेर काता गया। इससे लगभग ४,००० वर्गगज खादी बुनी गई। रुई लोग स्वयं ही इकट्ठी करते हैं, पींजते और कातते हैं। वेडछीमें इसे चोधरा लड़के ही बुनते हैं। बुनाई केवल दो आना प्रति वर्गगज ली जाती है और बुनकरको इस तरह मिलनेवाली रोजीके अलावा कुछ ऊपरसे भी दिया जाता है। कुछ एक गाँवों में इस प्रवृत्तिके अन्तर्गत लोगोंको बढ़ईका काम भी मिला है। अच्छा चरखा दो रुपये में मिल जाता है। इस तरह खादी पहननेवालेको खादी दो आना गज पड़ रही है और जहाँ एक भी दूसरा धन्धा न था वहाँ बुनाई और बढ़ईगिरीका धन्धा पैदा हो गया है।

दो वर्ष पहले मैं जब वहाँ गया था तब मैंने लोगोंसे पूछा था कि उन्हें चरखेसे वर्ष-भरमें कितना फायदा हुआ है। तब एक वृद्धने उल्लासपूर्वक बताया था, "१० रुपयेका।" श्री नारायण मलकानी इसकी तफसील देते हैं: एक चोधरा कुटुम्बको वर्षमे ३४ गज कपड़ा चाहिए— १० गज बच्चोंको और २४ गज पति-पत्नीको। यह ३४ गज कपड़ा लोगोंको सवा चार रुपयेमें पड़ जाता है। पहले इतने ही कपड़ेका उन्हें २२ रुपया पड़ता था, इस तरह कपड़ा तैयार करनेवाले कुटुम्बको लगभग पौने अठारह रुपयेका फायदा होता है। हाँ, इसमें कपासकी कीमत नहीं गिनी गई है। इतनी ही

रुईसे बेचारे चोधरोंको बाजारमें कितना मिलता है? १४ सेर रुईकी कीमत उन्हें

  1. दक्षिण गुजरातकी अनुसूचित जाति।
  2. गुजरातके सूरत जिलेमें। इसकी व्यवस्था जुगतराम दवे किया करते थे।