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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

और अनेक लोग जिस वर्गका टिकट लेते हैं उससे ऊँचे वर्गमें मुसाफरी करते हैं। खादी पहननेवाले और अन्य सब देशसेवकोंसे ऐसे दोषोंसे मुक्त रहनेकी अपेक्षा की जाती है। लोगोंको यह भी समझ लेना चाहिए कि न तो खादी पहननेवाले सब लोग साधु हैं और न खादी पहननेवाले सब लोग असाधु हैं। खादीको वस्त्रके रूपमें अच्छे-बुरे सब पहनते हैं। जो उसे पवित्र मानकर उसकी पवित्रता कायम रखेंगे वह उनकी उतनी विशेषता कहलायेगी। इस विशेषता के साथ जगतका कोई सम्बन्ध नहीं है। लोगोंको तो सबकी परीक्षा करके ही उनका विश्वास करना चाहिए।

अन्तमें सब लोगोंको इतना जान लेना चाहिए कि मेरा कोई चेला नहीं है; अथवा यदि कोई है तो वह मैं स्वयं ही हूँ। स्वयं अपना निर्माण करनेमें मेरा सारा समय लग जाता है; इसलिए चेलेकी जरूरत भी नहीं रहती।

[ गुजरातीसे ]
नवजीवन, २७-६-१९२६

७३. टिप्पणियाँ

सणोसलीमें कताई

सणोसली, पंचमहाल जिलेमें कालोल ताल्लुकेका एक गाँव है। भाई रणछोड़दास शाहने वहाँकी कताई-प्रवृत्तिके बारेमें कुछ जानने योग्य बातें लिखी हैं, मैं उन्हें नीचे देता हूँ।[१]

यहाँ चरखोंकी संख्या इतनी ज्यादा नहीं है कि उसे कोई विशेष महत्व दिया जाये। लेकिन उनपर जितना सूत काता जा रहा है, उसकी तादाद प्रति चरखा अच्छी कही जा सकती है। इस पत्रमें जानने लायक बात तो यह है कि कातनेवाले

अपने लिए रुई स्वयं पींज लेते हैं और पूनियाँ भी बना लेते हैं। इतना सुधार जहाँ-जहाँ हो सकता हो, वहाँ यह तुरन्त कर लिया जाना चाहिए। पींजनेकी क्रिया बहुत आसान है; जो व्यक्ति अपनी रुई स्वयं पींज लेता है वह अच्छा, महीन और ज्यादा सूत कात सकता है जबकि पिंजारोंकी पिंजी रुईसे जैसा चाहो वैसा सूत कातनेमें कठिनाई होती है। इसमें दूसरी जानने योग्य बात यह है कि जो किसान अपनी कपास स्वयं ही लोढ़ लेता है वह अपनी कमाईमें बहुत वृद्धि कर सकता है। स्वयं कपास लोढ़नेकी क्रियाका फिरसे प्रचलन तभी हो सकता है जब कताई भी स्वयं घरमें ही की जाये। इसलिए हाथ कताईके फिर प्रचलित होनेसे अन्य अनेक उद्योगोंका, जो आज खत्म हो गये हैं, जीर्णोद्धार सहज ही हो जाता है और चतुर किसान अपनी कमाईमें अच्छी खासी वृद्धि कर सकता है।

  1. यहाँ नहीं दी जा रही हैं।