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६८. पत्र : देवदास गांधीको

आश्रम
साबरमती
बृहस्पतिवार, ज्येष्ठ सुदी १४, [२४ जून, १९२६ ][१]

चि० देवदास,

तुम्हारा पत्र मिला। महादेवको लिखा तुम्हारा पत्र मैंने पढ़ा था। मेरी डाँटकी चिट्ठी उससे पहले जा चुकी थी। तुम्हारा पत्र मुझे रास्तेमें मिला, यह बात तो तुम मेरे चक्रवृद्धि ब्याजके उल्लेखसे जान गये होगे। गिरधारी अस्पताल से छुट्टी पाकर आ गया है; लेकिन यह नहीं कह सकते कि उसकी तन्दुरुस्ती अब बहुत अच्छी हो गई है। उसे यहाँ आ जाना चाहिए। जमनालालजी भी लगभग उसी समय यहाँ पहुँचेंगे। उसके बाद में विचार करके उसे वहाँ भेजना होगा तो भेज दूंगा। गिरधारीके अस्पतालसे आनेके तुरन्त बाद मैंने डॉ० दलाल और भाई तुलसीदासको पत्र[२] लिखा था। मैंने लिखा था कि हम सब सेवारत रहें तो अंशतः उनके ऋणसे उऋण हो सकते हैं। उसके उत्तरमें डॉ० दलालका पत्र मिल गया है। उसे मैं इसके साथ भेज रहा हूँ।

गुजराती प्रति (एस० एन० १९६३८) की फोटो-नकलसे।

६९. पत्र : देवदास गांधीको

आश्रम
साबरमती
शुक्रवार [२५ जून, १९२६ ][३]

चि० देवदास,

इसके साथ भाई तुलसीदासका पत्र है। कल रातसे बेलाबहन[४] फिर बीमार पड़ गई हैं। उनका पुराना रोग फिर उखड़ आया है। वे इसे बम्बईसे साथ लाई हैं। भाई लक्ष्मीदाससे कहना कि चिन्ता करनेका कोई कारण नहीं है। राजेन्द्रबाबू आज आ गये हैं और २९ या ३० तारीखतक रहेंगे। वे चरखा संघकी बैठकमें भाग लेनेके लिए आये हैं । यह बैठक कल होगी। उस जर्मन बहनको यहाँ कल आ जाना

  1. गिरधारीके अस्पतालसे छुट्टी पाकर घर आनेके उल्लेखसे मालूम होता है कि यह पत्र १९२६ लिखा गया था।
  2. देखिए “पत्र: तुलसीदासको”, २१-६-१९२६ तथा “पत्र : डॉ० दलालको”, २१-६-१९२६ ।
  3. २६ जून, १९२६ को हुई अखिल भारतीय चरखा संघकी बैठकके उल्लेखसे लगता है कि यह पत्र २५ जून, १९२६ को लिखा गया था।
  4. लक्ष्मीदास आसरकी पत्नी।