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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

राधा[१], रुखी[२] और कुसुम[३] बुखारमें पड़ी हैं। कुसुम तो बम्बईसे आनेके बाद बीमार ही रहती है।

गुजराती प्रति (एस० एन० १९६३६) की माइक्रोफिल्मसे।

६७. पत्र : प्रभालक्ष्मीको

आश्रम
साबरमती
ज्येष्ठ सुदी १४ १९८२, २४ जून, १९२६

चि० प्रभालक्ष्मी,

तुम्हारा पत्र मिला। तुम्हारी इच्छाके अनुसार तुम्हारी अनुमतिके बिना मैं तुम्हारे पत्रका उपयोग नहीं करूंगा। यदि लोग चर्चा करें तो उनका मुँह कैसे बन्द किया जा सकता है? जहाँ हमारा दोष नहीं है, अगर वहाँ हमपर दोषारोपण किया जाये तो उससे हमें हँसी ही आयेगी। और जहाँ हमारा दोष हो वहाँ दूसरे लोग हमारे प्रति कठोर हों तो हमें अपने ऊपर उनसे भी ज्यादा कठोरता बरतनी चाहिए। इससे हमें उनकी कठोरता कभी बुरी न लगेगी। ईश्वर तो सर्वव्यापक, निरंजन और निराकार है। इसलिए हमें उसे अपने हृदयमें अंकित करके उसका ध्यान करना चाहिए। हम सब लोग बड़े या छोटे, अच्छे या बुरे, बुद्धिशाली या मूढ़, जैसे भी हैं, अपने पूर्व कर्मोके फलस्वरूप हैं। किसने अच्छे कर्म किये हैं, हम किस कारण अच्छे बने हैं, आदि प्रश्नोंका निर्णय हम करें तो यह ईश्वरत्वका दावा करना हुआ; ऐसा दावा करनेसे यह प्रश्न कभी नहीं सुलझता। इस सम्बन्धमें जब बुद्धिका उपयोग व्यर्थ हो जाता है तब श्रद्धाका जन्म होता है। मेरी दृष्टि में तुम्हारा तात्कालिक कर्तव्य यह है कि तुम शान्त रहो, जो हुआ है उसे भूल जाओ और तुम्हारे हाथ में जो कार्य है, उसे भली-भाँति सम्पन्न करो।

गुजराती प्रति (एस० एन० १९६३७) की माइक्रोफिल्मसे।

  1. मगनलाल गांधीकी पुत्रियाँ।
  2. मगनलाल गांधीकी पुत्रियाँ।
  3. आश्रमकी एक छात्रा।